Mahashivratri Vrat Katha | Image Source | IBC24
Mahashivratri Vrat Katha : महाशिवरात्रि हिंदू धर्म में अत्यंत पावन पर्व माना जाता है। इस दिन श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा बेलपत्र, धतूरा, भांग आदि अर्पित करके करते हैं। मान्यता है कि इस दिन महादेव की पूजा और व्रत कथा का पाठ करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। शिवपुराण में महाशिवरात्रि व्रत का महत्व विस्तार से बताया गया है।
Mahashivratri Vrat Katha : पुराणों के अनुसार, एक शिकारी चित्रभानु अपनी जीविका के लिए शिकार करता था। वह एक साहूकार से ऋण ले चुका था, जिसे चुका पाने में असमर्थ होने के कारण वह बंदी बना लिया गया। जिस दिन उसे बंदी बनाया गया, वह दिन शिवरात्रि था। इस दौरान उसने शिवरात्रि व्रत कथा सुनी, जिससे अनजाने में ही उसने व्रत रख लिया। बंदीगृह से मुक्त होकर वह शिकार की तलाश में जंगल में गया और एक पेड़ पर चढ़कर रात बिताने लगा। संयोग से, उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था, जो बेलपत्र से ढका हुआ था। शिकारी को इसकी जानकारी नहीं थी, लेकिन जब उसने पेड़ की टहनियां तोड़ीं, तो वे शिवलिंग पर गिरती रहीं। इस प्रकार, अनजाने में ही उसने पहले प्रहर की पूजा कर ली।
Mahashivratri Vrat Katha : रात में पहली हिरणी तालाब पर पानी पीने आई, लेकिन शिकारी के वार करने से पहले उसने विनती की कि उसे प्रसव करने दिया जाए। शिकारी ने उसे छोड़ दिया और इस दौरान पुनः बेलपत्र शिवलिंग पर गिर गए, जिससे उसकी दूसरे प्रहर की पूजा हो गई। इसके बाद दूसरी और तीसरी हिरणी भी आईं, जिन्होंने शिकारी से अपने परिवार से मिलने के लिए समय मांगा। शिकारी ने उन्हें भी जाने दिया और इस दौरान बेलपत्र फिर से शिवलिंग पर गिरते रहे, जिससे तीसरे और चौथे प्रहर की पूजा भी पूर्ण हो गई। अंततः, हिरण भी अपने पूरे परिवार के साथ शिकारी के समक्ष आ गया। यह देखकर शिकारी को ग्लानि हुई और उसने सभी को जीवनदान दे दिया।
Mahashivratri Vrat Katha : इस अनजाने में हुए शिवरात्रि व्रत के प्रभाव से चित्रभानु को मोक्ष की प्राप्ति हुई। जब मृत्यु के समय यमदूत उसे लेने आए, तो शिवगणों ने यमदूतों को रोक दिया और चित्रभानु को शिवलोक ले गए। अगले जन्म में भी उसने शिवरात्रि व्रत का पालन किया और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया। इस कथा से महाशिवरात्रि व्रत के महत्व का पता चलता है और यह व्रत करने से समस्त दुख दूर होते हैं।