Mohini Ekadashi 2025 date : किस दिन रखा जायेगा मोहिनी एकादशी का व्रत? जाने तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं व्रत कथा की सम्पूर्ण जानकारी | Mohini Ekadashi 2025 date

Mohini Ekadashi 2025 date : किस दिन रखा जायेगा मोहिनी एकादशी का व्रत? जाने तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं व्रत कथा की सम्पूर्ण जानकारी

On which day will the fast of Mohini Ekadashi be kept? Know the complete information of date, auspicious time, worship method and fast story

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Modified Date: April 22, 2025 / 03:29 PM IST
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Published Date: April 22, 2025 3:29 pm IST

Mohini Ekadashi 2025 date : वैशाख मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं। मोहिनी एकादशी व्रत 2025 गुरुवार, 8 मई 2025 को रखा जाएगा। ऐसा विश्वास किया जाता है कि यह तिथी सब पापों को हरनेवाली और उत्तम है। इस दिन जो व्रत रहता है उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोहजाल तथा पातक समूह से छुटकारा पा जाते हैं। मान्‍यता है कि इस व्रत को पूर्ण संकल्‍प के साथ करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सुख सौभाग्‍य में वृद्धि होती है, साथ ही आपको मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए आपको बताते हैं मोहिनी एकादशी व्रत की पूजाविधि और शुभ मुहूर्त..

Mohini Ekadashi 2025 date

मोहिनी एकादशी व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त
वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे मोहिनी एकादशी कहते हैं, 8 मई को मनाई जाएगी। यह एकादशी 7 मई को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर शुरू होगी और 8 मई को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर खत्म होगी। उदया तिथि की मान्‍यता के अनुसार मोहिनी एकादशी का व्रत 8 मई को रखा जाएगा।

Mohini Ekadashi 2025 date

मोहिनी एकादशी व्रत की पूजाविधि
– व्रत करने वाले व्यक्ति को प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए। शुद्ध वस्त्र धारण करके व्रत करने का संकल्‍प लें।
– भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र को पीले वस्त्र अर्पित करें। चंदन, अक्षत, फूल, तुलसीदल, दीपक, धूप और नैवेद्य चढ़ाकर पूजन करें।
– व्रत के दिन मोहिनी एकादशी की कथा का श्रवण या पाठ अवश्य करना चाहिए। इससे व्रत पूर्ण माना जाता है।
– दिनभर भगवान विष्णु का नाम का स्मरण, भजन, कीर्तन व उपवास करें। फलाहार लिया जा सकता है। अन्न, चावल और दाल से परहेज करें।
– रात्रि में जागरण करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए रात बिताएं।
– द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद तुलसी जल से स्नान कर व्रत पारण करें। योग्य ब्राह्मण को भोजन व दान देकर व्रत को पूर्ण करें।

भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे: हे धर्मराज! वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। मैं आपसे एक कथा कहता हूँ, जिसे महर्षि वशिष्ठ ने श्री रामचंद्रजी से कही थी। राजन आप कृपया ध्यानपूर्वक सुनें।

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मोहिनी एकादशी व्रत कथा!
एक समय श्रीराम बोले कि हे गुरुदेव! कोई ऐसा व्रत बताइए, जिससे समस्त पाप और दु:ख का नाश हो जाए। मैंने सीताजी के वियोग में बहुत दु:ख भोगे हैं।

महर्षि वशिष्ठ बोले: हे राम! आपने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। आपकी बुद्धि अत्यंत शुद्ध तथा पवित्र है। यद्यपि आपका नाम स्मरण करने से मनुष्य पवित्र और शुद्ध हो जाता है, तब भी लोकहित में यह प्रश्न अच्छा है। वैशाख मास में जो एकादशी आती है उसका नाम मोहिनी एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य सब पापों तथा दु:खों से छूटकर मोहजाल से मुक्त हो जाता है। मैं इसकी कथा कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।

सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा राज करता था। वहाँ धन-धान्य से संपन्न व पुण्यवान धनपाल नामक वैश्य भी रहता है। वह अत्यंत धर्मालु और विष्णु भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएँ, सरोवर, धर्मशाला आदि बनवाए थे। सड़कों पर आम, जामुन, नीम आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए थे।

उसके 5 पुत्र थे- सुमना, सद्‍बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि। इनमें से पाँचवाँ पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था। वह पितर आदि को नहीं मानता था। वह वेश्या, दुराचारी मनुष्यों की संगति में रहकर जुआ खेलता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता तथा मद्य-मांस का सेवन करता था। इसी प्रकार अनेक कुकर्मों में वह पिता के धन को नष्ट करता रहता था।

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इन्हीं कारणों से त्रस्त होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने गहने एवं कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। जब सब कुछ नष्ट हो गया तो वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख-प्यास से अति दु:खी रहने लगा। कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया।

एक बार वह पकड़ा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया। राजाज्ञा से इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया। कारागार में उसे अत्यंत दु:ख दिए गए। बाद में राजा ने उसे नगरी से निकल जाने का कहा।

वह नगरी से निकल वन में चला गया। वहाँ वन्य पशु-पक्षियों को मारकर खाने लगा। कुछ समय पश्चात वह बहेलिया बन गया और धनुष-बाण लेकर पशु-पक्षियों को मार-मारकर खाने लगा।

एक दिन भूख-प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौण्डिन्य ऋषि के आश्रम में पहुँच गया। उस समय वैशाख मास था और ऋषि गंगा स्नान कर आ रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ सद्‍बुद्धि प्राप्त हुई।

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वह कौण्डिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि: हे मुने! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं। आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण बिना धन का उपाय बताइए। उसके दीन वचन सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की मोहिनी एकादशी का व्रत करो। इससे अनेक जन्मों के किये हुए मेरु पर्वत जैसे समस्त महापाप भी नष्ट हो जाते हैं |

मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया।

हे राम! इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को गया। इस व्रत से मोह आदि सब नष्ट हो जाते हैं। संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से एक हजार गौदान का फल प्राप्त होता है।

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