Rudrashtakam : रोज़ाना प्रातः श्री रुद्राष्टकम का पाठ सुनने मात्र से ही विफल हो जाएँगी सभी बुरी शक्तियां, भगवान शिव की बनी रहेगी विशेष कृपा
All evil powers will fail just by listening to the recitation of Shri Rudrashtakam every morning, special grace of Lord Shiva will remain
Namami shamishan nirvanroopam
Rudrashtakam : भगवान शिव जी तो भोलेनाथ हैं। भक्त द्वारा की गई थोड़ी सी ही प्रार्थना से वे प्रसन्न हो जाते हैं। यदि शिव रुद्राष्टकम का रोजाना पाठ किया जाए तो भक्त को शिवजी की असीम कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है। शिव रुद्राष्टकम से जीवन के हर कोने में महादेव का आशीर्वाद आता है। साथ ही, यह कमरे या जप क्षेत्र को शांति और समृद्धि से भर देता है । इसका प्रतिदिन जाप करने से सभी प्रकार की बीमारियों व् बुरी शक्तियों से मुक्ति मिलती है।
Rudrashtakam : शिव रुद्राष्टकम स्त्रोत के पाठ से होने वाले लाभ
– शत्रुओं पर विजय मिलती है
– भगवान शिव की कृपा बनी रहती है
– आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ता है
– जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है
– सभी संकट दूर हो जाते हैं
– धन में वृद्धि होती है
Rudrashtakam : आईये यहाँ प्रस्तुत हैं अत्यंत शक्तिशाली श्री रुद्राष्टकम स्तोत्रम
॥ श्रीरुद्राष्टकम् ॥
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥
Rudrashtakam
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥
Rudrashtakam
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥
Rudrashtakam
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥
Rudrashtakam
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥
Rudrashtakam
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥
Rudrashtakam
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥
Rudrashtakam
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम् ॥
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