Sankashti Chaturthi 2024: 28 या 29 जनवरी, जानें कब है संकष्टी चतुर्थी? पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और व्रतकथा |

Sankashti Chaturthi 2024: 28 या 29 जनवरी, जानें कब है संकष्टी चतुर्थी? पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और व्रतकथा

Sankashti Chaturthi 2024:

Edited By :   Modified Date:  January 27, 2024 / 11:14 AM IST, Published Date : January 27, 2024/11:13 am IST

Sankashti Chaturthi 2024:  माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस तिथि को तिल चतुर्थी या माघी चतुर्थी भी कहा जाता है। इस बार संकष्टी चतुर्थी का व्रत 29 जनवरी, सोमवार को रखा जाएगा। इस दिन भगवान गणेश और चंद्र देव की उपासना की जाती है। गणेश जी की उपासना से जीवन के सभी संकट टल जाते हैं। क्योंकि गणेश जी को विध्नहर्ता के नाम से जाना जाता है। साथ ही साथ इस दिन का संबंध संतान प्राप्ति से भी होता है।

संकष्टी चतुर्थी 2024 शुभ मुहूर्त (Sankashti Chaturthi 2024 Shubh Muhurat)

इस बार माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 29 जनवरी, सोमवार को सुबह 6 बजकर 10 मिनट से लेकर 30 जनवरी को सुबह 8 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। उदयातिथि के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी 29 जनवरी को ही मनाई जाएगी। साथ ही इस दिन चंद्रोदय का समय रात 9 बजकर 10 मिनट है।

संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि (Sankashti Chaturthi Pujan Vidhi)

इस दिन सबसे पहले स्नान करने के बाद सूर्य को अर्घ्य देना है। इसके बाद गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। उसके बाद गणेश जी को तिलक लगाएं, दुर्वा, जल, चावल, जनेऊ अर्पित करें। फिर गणेश जी को मोदक या लड्डू का भोग लगाएं। सकट चौथ के दिन भगवान गणेश को तिल से बनी हुई चीजों का भोग जरूर लगाना है। इसके बाद धूप और दीया जलाकर भगवान गणेश के मंत्रों का जप करें।

साथ ही इस दिन सकट चौथ की कथा का जाप भी करना चाहिए। इस दिन गणेशजी के 12 नामों का उच्चारण भी करना चाहिए। शाम के समय भी इसी तरह गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। चंद्रमा को अर्घ्य देते समय लोटे में तिल भी डालना है। शाम को चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण करना है।

संकष्टी चतुर्थी कथा sankashti chaturthi

इसी दिन भगवान गणेश अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से निकलकर आए थे। इसीलिए इसे सकट चौथ कहा जाता है। एक बार मां पार्वती स्नान के लिए गईं तो उन्होंने दरबार पर गणेश को खड़ा कर दिया और किसी को अंदर नहीं आने देने के लिए कहा। जब भगवान शिव आए तो गणपति ने उन्हें अंदर आने से रोक दिया। भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। पुत्र का यह हाल देख मां पार्वती विलाप करने लगीं और अपने पुत्र को जीवित करने की हठ करने लगीं।

जब मां पार्वती ने शिव से बहुत अनुरोध किया तो भगवान गणेश को हाथी का सिर लगाकर दूसरा जीवन दिया गया और गणेश गजानन कहलाए जाने लगे। इस दिन से भगवान गणपति को प्रथम पूज्य होने का गौरव भी हासिल हुआ। संकट चौथ के दिन ही भगवान गणेश को 33 करोड़ देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। तभी से यह तिथि गणपति पूजन की तिथि बन गई। कहा जाता है कि इस दिन गणपति किसी को खाली हाथ नहीं जाने देते हैं।

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