Shani Chalisa : अनावश्यक रुकावटें एवं जीवन में होने वाली एकाएक अनहोनी से छुटकारा पाने के लिए 40 दिन लगातार करें शनि चालीसा का पाठ और पाएं लाभ
To get rid of unnecessary obstacles and sudden untoward incidents in life, recite Shani Chalisa continuously for 40 days and get benefits
Shani Chalisa
Shani Chalisa : शनिदेव को सूर्यदेव का सबसे बड़ा पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। शनिदेव व्यक्तियों को उनके कर्मों के आधार पर शुभ या अशुभ फल प्रदान करते हैं। सत्य तो यह ही है कि शनि देव प्रकृति में संतुलन पैदा करते हैं, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करते हैं। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को दण्डिंत (प्रताडित) करते हैं। शनि देव की पूजा से शुभ कर्मों का फल प्राप्त होता है और बुरे कर्मों के दुष्प्रभाव कम होते हैं। उनकी पूजा से जीवन की सारी बाधाएं और कष्ट दूर हो जाते हैं।
Shani Chalisa : शनि चालीसा का पाठ करने से होने वाले लाभ
– शनि देव प्रसन्न होते हैं और मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
– शनि की साढ़ेसाती, महादशा, और कुंडली में शनि के खराब प्रभाव दूर होते हैं।
– शादी-विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
– सेहत से जुड़ी परेशानियां दूर होती हैं।
– घर में सुख-समृद्धि आती है और मानसिक शांति मिलती है।
– घर के कलह-क्लेश दूर होते हैं।
– कुंडली में शनि का प्रकोप कम होता है।
– जीवन के दुख कम होते हैं।
– आने वाली अनहोनी से बचाव होता है।
मान्यता है कि शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार को शनि चालीसा का पाठ करना चाहिए। शनि चालीसा का पाठ करने के साथ-साथ पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाना, दीपक जलाना, और काले तिल चढ़ाना भी किया जाता है। कहा जाता है कि चालीस दिनों तक लगातार शनि चालीसा का पाठ करने से परेशानियां दूर होती हैं।
Shani Chalisa : यहाँ प्रस्तुत हैं शनि देव जी के शक्तिशाली मंत्र
ॐ शं शनैश्चराय नमः॥
ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:॥
नीलांजना समाभासं रविपुत्रम यमराजन, छाया मार्तंड संभुतम, तम नमामि शनैश्चरम॥
Shani Chalisa : आईये यहाँ पढ़ें और सुनें श्री शनि चालीसा
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुःख दूर करि,कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु,सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज॥
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॥ चौपाई ॥
जयति जयति शनिदेव दयाला।करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै।माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला।टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके।हिये माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन।यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःख भंजन॥
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सौरी, मन्द, शनि, दशनामा।भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं।रंकहुं राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत।तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत वन रामहिं दीन्हो।कैकेइहुं की मति हरि लीन्हो॥
बनहूं में मृग कपट दिखाई।मातु जानकी गयी चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा।मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति मति बौराई।रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका।बजि बजरंग बीर की डंका॥
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नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलाखा लाग्यो चोरी।हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो।तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महँ कीन्हों।तब प्रसन्न प्रभु है सुख दीन्हों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी।आपहुँ भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी।भूँजी-मीन कूद गयी पानी॥
श्री शंकरहि गहयो जब जाई।पार्वती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा।नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
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पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी।बची द्रोपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो।युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव-लखि विनती लाई।रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना।हय दिग्ज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा।सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
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जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै।मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा।स्वर्ण लौह चाँजी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं।धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै॥
समता ताम्र रजत शुभकारी।स्वर्ण सर्वसुख मंगल कारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै।कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अदभुत नाथ दिखावैं लीला।करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई।विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई॥
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पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत।दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
॥ दोहा ॥
पाठ शनिश्चर देव को,कीन्हों विमल तैयार।
करत पाठ चालीस दिन,हो भवसागर पार॥
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