#ATAL_RAAG_ मिशन-2026 की दिशा में ऐतिहासिक सफलता
- 17 अक्टूबर 2025 को छग में 210 माओवादियों का समर्पण एक बड़ी और ऐतिहासिक सफलता है।
मिशन 2026 की दिशा में ऐतिहासिक सफलता

~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
आप राजनीति के लिए भाजपा सरकार की आलोचना कर सकते हैं।ग़लत पर आलोचना करनी ही चाहिए। लेकिन क्रूर माओवादी आतंकवाद (नक्सलवाद) के खात्मे के लिए बीजेपी सरकार ने नई लकीर खींच दी है। 17 अक्टूबर 2025 को छग में 210 माओवादियों का समर्पण एक बड़ी और ऐतिहासिक सफलता है। हथियार का रास्ता छोड़कर हाथों में संविधान यानी लोकतंत्र की राह पकड़ने वालों के लिए सरकार ने — रेड कार्पेट बिछाकर स्वागत भी किया। गुलाब देकर अभिनंदन करते हुए बताया कि बारूद नहीं अब पुष्प की भांति ही सुगंध बिखेरिए।

आप सोचिए कि जिन नक्सलियों के हाथों में हथियार रहते थे और जो हिंसा से छत्तीसगढ़ की धरती को लाल करते थे।अब वो माओवादी हथियार छोड़कर संविधान थाम रहे हैं। हिंसा की बजाय शांति और सकारात्मक भूमिका की ओर बढ़ रहे हैं। इस मोड़ तक लाने के पीछे निश्चय ही सरकार की मुखरता और प्रतिबद्धता रही है। जो अब इस रुप में सबके सामने आ पाई है। लगातार आलोचनाओं और आरोपों के बावजूद भी सरकार औैर जवान अपने उद्देश्य से विचलित नहीं हुए। माओवादियों ने अगर हिंसा का रास्ता चुना तो उन्हें संहार का सामना करना पड़ा और अब शांति की ओर बढ़े तो सरकार ने स्वागत किया।

निश्चय ही इसके लिए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और गृहमंत्री विजय शर्मा बधाई के पात्र हैं। इन्होंने छत्तीसगढ़ में शांति के संकल्प को केवल नारों और वादों में ही सीमित नहीं रखा। बल्कि उसे साकार कर दिखाया है। इससे पहले भी माओवादी छिटपुट समर्पण करते रहे हैं। लोन वर्राटू अभियान की इसमें बड़ी भूमिका रही है। लेकिन एक साथ 210 की संख्या में माओवादियों का समर्पण सरकार की लोक हितकारी भूमिका का प्रकट करता है। इसके साथ ही ‘नक्सलवादी आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति 2025’, नियद नेल्लानार योजना और ‘पूना मारगेम-पुनर्वास से पुनर्जीवन’ जैसी योजनाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

सरकार ने ये बता दिया है उसका उद्देश्य बस्तर में स्थायी शांति है। इससे किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता है। जहां माओवादियों के खिलाफ जवानों ने लगातार आक्रामक कार्रवाई की। वहीं बातचीत के माध्यम से आत्मसमर्पण के रास्ते भी खोले। हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल करने के लिए पहल की। इस पर सफलता भी पाई। स्पष्ट है कि ये ‘पुनर्वास से पुनर्जीवन’ लक्ष्य है जिसे मार्च 2026 तक केंद्र की मोदी सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार पूरा करने में पूरी ताक़त झोंक चुकी है। लेकिन चुनौतियां अब भी बाकी हैं। अब बस्तर समेत समूचा छत्तीसगढ़ शांति के रास्ते पर बढ़ चला है। बस्तर क्षेत्र में अब बारूद की गंध नहीं बहेगी बल्कि लोकतन्त्र की छांव में प्रगति के साथ कदम ताल करेगा।
~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
( साहित्यकार, स्तंभकार एवं पत्रकार)
Disclaimer- ब्लॉग में व्यक्त विचारों से IBC24 अथवा SBMMPL का कोई संबंध नहीं है। हर तरह के वाद, विवाद के लिए लेखक व्यक्तिगत तौर से जिम्मेदार हैं।
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