'बोधघाट' पर वार-पलटवार ! प्रोजेक्ट का विरोध क्यों? | Attack on 'Bodh Ghat'! Why oppose the project?

‘बोधघाट’ पर वार-पलटवार ! प्रोजेक्ट का विरोध क्यों?

'बोधघाट' पर वार-पलटवार ! प्रोजेक्ट का विरोध क्यों?

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 09:01 PM IST, Published Date : February 10, 2021/5:36 pm IST

रायपुर, छत्तीसगढ़। केंद्रीय जल आयोग से मंजूरी मिलने के बाद राज्य सरकार एक ओर बोधघाट परियोजना के सर्वेक्षण और डीपीआर तैयार करने में जुटी है तो दूसरी ओर बस्तर जहां प्रोजेक्ट प्रस्तावित है।वहां परियोजना को लेकर विरोध के स्वर तेज हो चले हैं।आदिवासी नेताओँ के नेतृत्व में सर्व आदिवासी समाज ने सरकार से हमेशा के लिए प्रोजेक्ट बंद करने की मांग की है। साथ ही चेतावनी दी है कि अगर ऐसा नहीं होता है तो वो सड़क पर उतरकर आंदोलन करेंगे। हालांकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों को आदिवासी विरोधी बताया।साथ ही सवाल पूछा कि। उनके पास कोई वैकल्पिक व्यवस्था हो तो बताएं। ऐसे में सवाल है कि आखिर बोधघाट परियोजना का विरोध क्यों है, क्या इसके पीछे खुशहाल बस्तर और आदिवासियों का हित जुड़ा है या सिर्फ कोरी सियासत ?

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दंतेवाड़ा के हितालकुडुम गांव में 5 हजार से अधिक आदिवासी 12 साल के अंतराल में होने वाले देव उत्सव में शामिल होने पहुंचे थे। तीन दिवसीय उत्सव में 19 पंचायतों के 56 गांव के ग्रामीणों ने एक बैठक बुलाई।जिसमें शामिल आदिवासियों ने एक सुर में बस्तर में प्रस्तावित बोधघाट परियोजना का विरोध किया है। ग्रामीणों ने फैसला किया कि अगर सरकार जल्द बोधघाट परियोजना को बंद करने पर सहमत नहीं होती है तो।दिल्ली में जैसे किसान सड़कों पर उतरे हैं।आदिवासी भी सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करेंगे।

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बारसूर में आयोजित इस बैठक में कोंडागांव, नारायणपुर, दंतेवाड़ा बीजापुर और बस्तर जिले के ग्रामीण शामिल हुए। दरअसल नक्सली भी बोधघाट परियोजना का विरोध कर रहे हैं। लिहाजा प्रोजेक्ट से प्रभावित इलाकों में बोधघाट परियोजना के खिलाफ माहौल बनने लगा है।इधर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने परियोजना का विरोध कर रहे लोगों से सवाल पूछा है कि।क्या आदिवासियों के खेत में पानी नहीं जाना चाहिए।अगर इसका और कोई उपाय है तो सुझाव दें।सीएम ने परियोजना का विरोध कर रहे लोगों को आदिवासियो का दुश्मन तक कह डाला।

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बोधघाट परियोजना को लेकर सीएम के बयान पर विपक्ष ने तंज कसा कि सरकार के पास पैसा कहां है कि वो योजना को पूरा कर सकेगी।

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जिसने बस्तर जीता उसने प्रदेश जीता, सियासी तौर पर हर दल इस बात को समझता है। इसके लिए सरकारें खुशहाल बस्तर का सपना देखती और दिखाती आई हैं।ये भी कड़वा सच है कि अपार संभावनाओँ के बाद भी बस्तर में इंद्रावती नदी पर कोई बड़ी योजना आकार नहीं ले पाई।जबकि साल 1979 से ही बोधघाट जल विद्युत एवं सिंचाई परियोजना का सपना राज्य सरकारों ने देखा है।

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मौजूदा सरकार भी इसे हर हाल में पूरा करने का प्रण ले चुकी है।खुशहाल बस्तर के लिए इस महत्वाकांक्षी परियोजना से जुड़े कुछ बड़े सवाल हैं, आखिर इस योजना का विरोध क्यों है, क्या इसे ठीक से आदिवासियों को समझाया नहीं जा सका है, क्या इसका विरोध कोरा सियासी नफे-नुकसान से जुड़ा है और सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या इस बार सरकार का प्रण इसे पूरा कर पाएगा।

 
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