बांदा (उप्र), 29 नवंबर (भाषा) । उत्तर प्रदेश के बांदा जिले से बह रही ‘केन’ देश की दूसरी ऐसी नदी है, जो पत्थरों में ‘रंगीन चित्रकारी’ करती है। देश और विदेश में यह आकृतिशुदा पत्थर ‘शज़र’ नाम से चर्चित है, फ़ारसी भाषा में शज़र का अर्थ ‘पेड़’ होता है। हालांकि, मुस्लिम देशों में इसे ‘हकीक’ भी कहते हैं। यह पत्थर दुनिया में सिर्फ भारत की दो नदियों ‘केन’ और ‘नर्मदा’ में ही पाया जाता है।
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उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में विभक्त बुंदेलखंड़ के बांदा जिले के कनवारा गांव में केन नदी का अंतिम छोर है। इस गांव में यह नदी यमुना नदी में मिलकर विलुप्त हो जाती है। केन नदी में मिलने वाला शज़र पत्थर मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के अजयगढ़ कस्बे से लेकर उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के कनवारा गांव तक ही मिलता है। इस नदी का उद्गम स्थान दमोह जिले की कैमूर पहाड़ी है, जो सात पहाड़ियां चीरकर यमुना नदी तक जाती है।
किंवन्दतियों में केन नदी के नामकरण की कहानी भी बड़ी अगूढ़ है। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार, केन नदी का पुराना नाम ‘कर्णवती’ नदी था। इसके बाद इसे ‘किनिया’ और ‘कन्या’ के बाद अब अपभ्रंश में ‘केन’ कहा जाने लगा। महाभारत काल में, ‘केन-एक कुमारी कन्या है’ का उल्लेख मिलता है।
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शज़र पत्थर की प्रदर्शनी में विदेशों तक भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके बांदा शहर के शज़र व्यवसायी द्वारिका प्रसाद सोनी ने बताया, ‘विश्व में सिर्फ भारत की नर्मदा और केन नदी में ही शज़र पत्थर पाया जाता है और इराक, ईरान और फ्रांस जैसे देशों में इन पत्थरों (आकृतियों के अनुसार) की मुंह मांगी कीमत मिलती है। मुस्लिम देशों में शज़र को ‘हकीक’ भी कहते हैं।’
उन्होंने बताया, ‘हज जाने वाले मुसलमान अपने साथ शज़र पत्थर लेकर जाते हैं। वे इसे ‘कुदरत का नायाब तोहफा’ मानते हैं। शौकीन लोग इसे अंगूठी में नग के तौर पर भी जड़वाते हैं।’
सोनी ने कहा, ‘केन और नर्मदा नदी के पानी में ‘सायलोदक’ नामक पदार्थ पाया जाता है, जो पत्थरों को एक-दूसरे से जोड़ता है। पत्थर को मशीन से तराशने के बाद आदिमानव, जंगली जानवर, पेड़-पौधे, राजा-रानी या जल जीवों की सुंदर आकृति निकलती है।’
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शज़र व्यवसायी सोनी ने कहा, ‘उन्होंने शज़र पत्थर से ताजमहल के नमूने के अलावा कई चीजें बनाई हैं। उन्हें इन पर राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है और नीदरलैंड तथा दक्षिण अफ्रीका के तंजानिया में शज़र पत्थर की प्रदर्शनी में वह भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं।’
उन्होंने बताया, ‘तराशे शज़र की कीमत विदेश में डेढ़ सौ से दो सौ गुना तक बढ़ जाती है। यहां चार सौ-पांच सौ रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत का पत्थर तराशने के बाद ईरान, इराक और फ्रांस में लाखों रुपये कीमत में बिकता है। हालांकि वह खुद शज़र की आपूर्ति दिल्ली, मुंबई और जयपुर तक ही करते हैं।’
बांदा जिले के एक अधिकारी ने बताया, ‘शज़र पत्थर के व्यवसाय को ‘एक जनपद-एक उत्पाद’ की श्रेणी में रखा गया है और अब बांदा में 24 शज़र कारखाने चल रहे हैं। इनके व्यवसायियों को बैंक ऋण भी उपलब्ध कराया गया है।’