छत्तीसगढ़ में साहू समाज का तुगलकी फरमान, जाति से बाहर शादी को बताया गुनाह

छत्तीसगढ़ में साहू समाज का तुगलकी फरमान, जाति से बाहर शादी को बताया गुनाह

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  • Publish Date - July 4, 2017 / 06:25 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:46 PM IST

 

आपने सिकलसेल एनीमिया के बारे में तो सुना होगा. ये एक अनुवांशिक बीमारी है । इसकी वजह से खून में लाल रक्त कणिका गोल न होकर हंसिए के आकार की हो जाती है. जिससे उसकी ऑक्सीजन एब्जॉर्ब करने की क्षमता कम हो जाती है और इस बीमारी का मरीज तमाम व्याधियों से घिरा रहता है. आमतौर पर जल्दी मृत्यु भी हो जाती है । 

छत्तीसगढ़ में करीब 35 लाख लोग ऐसे हैं. जो सिकलसेल के कैरियर के रूप में चिन्हित किए गए हैं जबकि 60 हजार से ज्यादा लोग इससे गंभीर रूप से पीड़ित हैं । प्रतिशत में देखें तो राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 12 फीसदी हिस्सा सिकलसेल की चपेट में हैं. प्रदेश की जिन जातियों पर इसका ज्यादा असर है. उनमें साहू जाति प्रमुख है । इस अनुवांशिक बीमारी का फिलहाल कोई सटीक इलाज नहीं है. पर इसके प्रसार को रोका जा सकता है । डॉक्टर इसके लिए अंतरजातीय विवाह की सिफारिश करते हैं । क्योंकि सिकल के वाहक और सामान्य व्यक्ति विवाह करते हैं तो होने वाले बच्चों में से सिर्फ 25 प्रतिशत यानी 4 में एक के मामले में ही सिकल वाहक होने का अंदेशा रहता है 

ये तो रही सिकल सेल एनीमिया और अंतरजातीय विवाह से जुड़ी सच्चाई । अब ये जान लेते हैं कि इस तथ्य की अनदेखी करते हुए साहू समाज क्या करने जा रहा है ।   

21वी सदी के भारत में जाति की जिद्दी दीवारें ढहने की बजाय और ऊंची होने लगी है. इसका ताजा उदाहरण है. अंतरजातीय विवाह को लेकर छत्तीसगढ़ के साहू समाज का रवैया । विशेषज्ञ कहते रहे हैं कि अंतरजातीय विवाह साहू समाज के लिए बेहद ज़रूरी है. क्योंकि इसी के ज़रिए वो सिकलसेल एनिमिया बीमारी को मात दे सकता है । इस सच्चाई से बाख़बर होने के बाद भी छत्तीसगढ़ प्रदेश साहू संघ अपनी सोच बदलने को तैयार नहीं दिखता । हाल ही उसने अपने सामाजिक नियमों में संशोधन किया है. जिसमें उसने अंतर जातीय विवाह के लिए काफी कड़ा नियम बनाया है । 

इसके तहत साहू समाज का जो भी सदस्य इंटरकास्ट मैरिज करेगा. उसे एक साल के लिए समाज से बाहर कर दिया जाएगा । अगर साहू समाज का कोई सदस्य दूसरे धर्म में विवाह करता है तो लड़का-लड़की दोनों को दो साल के लिए समाज से बाहर कर दिया जाएगा. जबकि विवाह को आयोजित करने वाले परिवार को हमेशा के लिए समाज से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा । ये नियम पूरे साहू समाज पर लागू नहीं है, बल्कि छत्तीसगढ़ प्रदेश साहू संघ की रायपुर इकाई के लिए बाध्यकारी होगा । समाज के नेताओं का ये कहना है कि इससे उनके समाज में मजबूती आएगी । 

एक ऐसा जाति समूह जो..एक ढीठ अनुवांशिक बीमारी से लड़ रहा हो और जिसके लिए अंतरजातीय विवाह एक संजीवनी की तरह हो. वो भी अगर वक्त की मांग और मौके की नज़ाकत पर ग़ौर न करे. बल्कि तंग सोच के आधार पर नियम तय करे..तो सवाल उठता है..आखिर कब तक हम जाति की जंजीरों से इस क़दर जकड़े रहेंगे ?

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