H-1B Visa: डोनाल्ड ट्रंप ने फिर दिया बड़ा झटका, H1-B वीजा की फीस बढ़ाकर की 1 लाख, भारतीयों पर सबसे ज्यादा असर…

H-1B Visa: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने के बाद, भारत को एक और बड़ा झटका दे दिया है। दरअसल, ट्रंप ने एच-1बी वीजा की फीस बढ़ाकर सालाना 1 लाख डॉलर कर दी है

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  • Publish Date - September 20, 2025 / 07:55 AM IST,
    Updated On - September 20, 2025 / 11:08 AM IST
HIGHLIGHTS
  • अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने H-1B वीजा नियम बदले
  • नए एप्लिकेशन पर 88 लाख रुपये फीस वसूलेगा US
  • केवल शीर्ष उम्मीदवार इस वीजा के लिए होंगे पात्र

H-1B Visa: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री को अपना सबसे अच्छा दोस्त बताया। पर, ट्रंप ने एक बार फिर कुछ ऐसा किया है जिससे उनकी दोस्ती पर सवाल खड़े हो रहे हैं। दरअसल, भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने के बाद से भारत और अमेरिका के रिश्ते में खटास आ गई थी, पर फिर ट्रंप ने मोदी को अपना सबसे अच्छा दोस्त बताया। ऐसा लग रहा था की भारत और अमेरिका के बीच सब कुछ ठीक हो रहा है। पर ट्रंप ने एच-1बी वीज़ा के लिए नई शर्तें लागू कर बड़ा झटका दिया है। जिसका असर भारत पर साफ तौर पर देखने को मिलेगा।

 एच-1बी वीज़ा के लिए नई शर्तें लागू

H-1B Visa: दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एक बड़ा ऐलान करते हुए एच-1बी वीज़ा (H-1B Visa) के लिए नई शर्तें लागू कर दी हैं। अब इस वीजा को हासिल करने के लिए कंपनियों को हर साल 1 लाख डॉलर यानी कि करीब 83 लाख रुपये का फीस भरना होगा।  इस फैसले से लाखों विदेशी पेशेवरों पर असर पड़ सकता है, खासकर भारतीय आईटी और टेक्नोलॉजी सेक्टर पर, जो अमेरिका के एच-1बी वीजा पर सबसे ज्यादा निर्भर है। डोनाल्ड ट्रंप के इस फैसले से भारतीय प्रोफेशनल्स को बड़ा झटका लगा है। इस फैसले का सबसे बड़ा खामियाजा भारतीय प्रोफेशनल्स को ही भुगतना पड़ेगा।

एच-1बी वीज़ा क्या है ?

जानकारी के लिए बता दें कि, H-1B वीजा कोई व्यक्ति खुद नहीं ले सकता। इसे पाने के लिए आपको किसी अमेरिकी कंपनी की जरूरत पड़ती है। वही कंपनी अमेरिकी सरकार को आवेदन भेजती है और कहती है कि उसे आपके जैसे स्किल वाले कर्मचारी की जरूरत है। कंपनी सारे कागज भरती है और सरकार को फीस देती है। अभी तक यह फीस बहुत कम थी, इसलिए कई बड़ी आईटी कंपनियां और कंसल्टेंसी फर्म हजारों-लाखों आवेदन डाल देती थीं। इससे अमेरिका में एंट्री-लेवल नौकरियां विदेशी इंजीनियरों से भर जाती थीं। अभी तक कंपनियों को सिर्फ 215 डॉलर रजिस्ट्रेशन फीस और करीब 780 डॉलर फॉर्म फीस देनी पड़ती थी। पर राष्ट्रपति ट्रंप ने अब फैसला किया है कि हर आवेदन के लिए कंपनी को 100,000 डॉलर लगभग 88 लाख रुपये देने पड़ेंगे। यह रकम बहुत बड़ी है, इसलिए अब कंपनियां सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए आवेदन करेंगी जिनकी स्किल बहुत जरूरी है। इसका सीधा असर यह होगा कि छोटे बिजनेस और स्टार्टअप इतने पैसे खर्च नहीं कर पाएंगे और विदेशी कर्मचारियों को स्पॉन्सर करना कम कर देंगे।

एच-1बी वीजा धारकों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की

H-1B Visa: बताते चलें कि, अमेरिका में एच-1बी वीजा धारकों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की है। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, इंफोसिस, विप्रो, एचसीएल और कॉग्निजेंट जैसी भारतीय कंपनियां हजारों कर्मचारियों को अमेरिका भेजती हैं। वहीं, अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल और गूगल भी इस लिस्ट में शामिल हैं। कैलिफोर्निया एच-1बी वीजा होल्डर्स का सबसे बड़ा केंद्र है।

अमेरिका के इस फैसले की पीछे की ये है वजह?
H-1B Visa: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस फैसले के पीछे की वजह डोनाल्ड ट्रंप का ‘गोल्ड कार्ड’ वीजा प्रोग्राम है। न्यू ‘गोल्ड कार्ड’ वीजा प्रोग्राम को तरजीह देते हुए ट्रंप ने कहा, ‘हमें ऐसा लगता है कि हम ‘गोल्ड कार्ड’ वीजा प्रोग्राम के तहत अरबो डॉलर जुटा सकेंगे और इससे अमेरिकी नागरिकों पर टैक्स कम होगा, अमेरिकी नागरिकों पर कर्ज कम हो जाएंगे।

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H-1B वीज़ा क्या होता है?

यह एक गैर-आव्रजन वीज़ा है, जो अमेरिकी कंपनियों को विदेशी पेशेवरों को नियुक्त करने की अनुमति देता है।

H-1B वीज़ा के लिए नई फीस कितनी तय की गई है?

अब कंपनियों को हर आवेदन पर लगभग $100,000 (करीब ₹83-88 लाख) फीस देनी होगी।

H-1B वीज़ा का सबसे ज्यादा लाभ किन देशों को मिलता है?

भारत के पेशेवरों को इस वीज़ा से सबसे अधिक लाभ मिलता है।