Gold Mukut of Mata Kali Theft: बंगालियों की आराध्य माता काली का सोने का मुकुट चोरी, पीएम मोदी ने किया था भेंट, 52 शक्तिपीठों में से है एक
Gold Mukut of Mata Kali Theft: बंगालियों की आराध्य माता काली का सोने का मुकुट चोरी, पीएम मोदी ने किया था भेंट, 52 शक्तिपीठों में से हैं एक
सतखीरा: Gold Mukut of Mata Kali Theft ज्योतिष के अनुसार कुल 12 राशियों को बताया गया है। राशिफल के माध्यम से विभिन्न काल-खण्डों के बारे में भविष्यवाणी की जाती है। वहीं रोजाना राशिफल घटनाओं को लेकर भविष्यकथन करता है। ज्योतिष के अनुसार शुक्रवार का दिन इन राशियों के लिए बेहद की सुखद होने वाले है। वहीं नवरात्रि का पर्व चल रहा है। आज नवरात्रि के नौवें अर्थात् नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की उपासना होती है। नवरात्रि नवमी का दिन इन राशियों के लिए शुभ होगा। लेकिन नवरात्रि के पावन पर्व के बीच एक बड़ी खबर सामने आई है। खबर है कि सतखीरा के श्यामनगर में जेशोरेश्वरी मंदिर से काली माता का मुकुट चोरी हो गया है।
Gold Mukut of Mata Kali Theft मिली जानकारी के अनुसार बांग्लादेश के सतखीरा के श्यामनगर में जेशोरेश्वरी मंदिर में देवी काली का मुकुट चोरी हो गया है। बताया जा रहा है कि इस मुकुट को पीएम मोदी ने भेंट किया था। मंदिर के पुजारी की मानें तो कल दोपहर पूजा पाठ के बाद सभी लोग चले गए थे, जिसके बाद मंदिर के सफाईकर्मी साफ—सफाई के लिए आए थे। वहीं, कुछ देर बाद मंदिर वापस आने पर मुकुट गायब था। बता दें कि कोरोना काल के बाद पीएम मोदी पहली बार विदेश यात्रा पर बांग्लादेश गए थे, इसी दौरान उन्होंने जोगेश्वरी मंदिर में माता के दर्शन कर मुकुट भेंट किया था।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह मंदिर हिंदू धर्म के 52 शक्तिपीठों में से एक है जहां देवी सती के हथेलियां और पैरों के तलवे गिरे थे और देवी वहां देवी जशोरेश्वरी के रूप में निवास करती हैं। उस दिन, मोदी ने प्रतीकात्मक इशारे के तौर पर देवी के सिर पर मुकुट रखा था। बता दें कि मंदिर की देखभाल पीढ़ियों से कर रहे परिवार के सदस्यों में से एक ज्योति चट्टोपाध्याय ने कहा कि मुकुट चांदी से बना था और उस पर सोने की परत चढ़ी हुई थी।
ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण अनारी नामक एक ब्राह्मण ने 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में करवाया था। उन्होंने जशोरेश्वरी पीठ (मंदिर) के लिए 100 दरवाजों वाला मंदिर बनाया और बाद में 13वीं शताब्दी में लक्ष्मण सेन ने इसका जीर्णोद्धार कराया और अंत में राजा प्रतापादित्य ने 16वीं शताब्दी में मंदिर का पुनर्निर्माण कराया।
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