Climate change : अगर तापमान में 3 डिग्री तक हो जाए बढ़ोतरी तो… यहां पड़ेगा सूखा और इन देशों में आएगी बाढ़

औद्योगिक क्रांति से पहले के वैश्विक तापमान के स्तर को 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न बढ़ने देने की प्रतिबद्धता जताई है।

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  • Publish Date - November 3, 2021 / 02:19 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:39 PM IST

नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन को लेकर देशों की चिंता बढ़ गई है। पेरिस जलवायु समझौते में कई अहम विषयों पर दुनिया भर के विशेषज्ञों ने चर्चा की। वहीं औद्योगिक क्रांति से पहले के वैश्विक तापमान के स्तर को 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न बढ़ने देने की प्रतिबद्धता जताई है।

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वैश्विक तापमान में इजाफा करीब 2.7 डिग्री सेल्सियस का होगा। कोई आश्चर्य नहीं कि ‘नेचर’ मैग्जीन के एक नए सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी समिति के लगभग दो तिहाई लेखकों का अनुमान है कि वृद्धि 3 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक की होगी।

ऐसे में 1.5 डिग्री सेल्सियस की तुलना में तीन डिग्री सेल्सियस वृद्धि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव कितने अलग होंगे? शुरुआत में यह समझना जरूरी है कि भले ही तापमान के अनुरूप प्रभाव बढ़े- 3 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर प्रभाव 1.5 डिग्री सेल्सियस की तुलना में दोगुने से अधिक होगा। ऐसा इसलिए कि वैश्विक तापमान में वृद्धि पहले से ही पूर्व-औद्योगिक स्तरों से लगभग 1 डिग्री सेल्सियस अधिक है, इसलिए 3 डिग्री सेल्सियस पर प्रभाव 1.5 डिग्री सेल्सियस के मुकाबले चार गुना अधिक होगा (0.5 डिग्री सेल्सियस की तुलना में अब से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि)।

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दो साल पहले सहयोगियों और वैश्विक तापमान वृद्धि के विभिन्न स्तरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देखते हुए एक रिसर्च प्रकाशित हुआ था। जिसमें पाया गया था कि, उदाहरण के लिए, एक बड़ी अत्यधिक गर्म हवा चलने (हीटवेव) की वैश्विक औसत वार्षिक संभावना 1981-2010 की अवधि में लगभग 5 प्रतिशत से बढ़कर 1.5 डिग्री सेल्सियस पर लगभग 30 प्रतिशत लेकिन 3 डिग्री सेल्सियस पर 80 प्रतिशत हो जाती है।

इस देश में बढ़ सकता है खतरा
वर्तमान में वर्षों में अपेक्षित नदी बाढ़ की औसत संभावना दो प्रतिशत से 1.5 डिग्री सेल्सियस पर 2.4 प्रतिशत तक बढ़ जाती है, और 3 डिग्री सेल्सियस पर दोगुनी होकर 4 प्रतिशत हो जाती है। 1.5 डिग्री सेल्सियस पर, सूखा पड़ने के लिए समय का यह अनुपात लगभग दोगुना हो जाता है, और 3 डिग्री सेल्सियस पर यह तीन गुना से अधिक हो जाता है। नदी में बाढ़ का खतरा दक्षिण एशिया में खासकर तेजी से बढ़ेगा और सूखा वैश्विक तुलना में अफ्रीका में ज्यादा पड़ेगा।

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ब्रिटेन जैसी जगहों पर भी 1.5 डिग्री सेल्सियस और 3 डिग्री सेल्सियस के बीच का अंतर ज्यादा हो सकता है जहां जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अन्य जगहों की तुलना में अपेक्षाकृत कम गंभीर होंगे। लोगों के लिए वास्तविक परिणाम इस बात पर निर्भर करेंगे कि ये प्रत्यक्ष भौतिक प्रभाव- सूखा, गर्म हवाओं की लहरें, बढ़ते समुद्र तल- अर्थव्यवस्था के तत्वों के बीच आजीविका, स्वास्थ्य और परस्पर संबंध को कैसे प्रभावित करते हैं।

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यदि तापमान बढ़ता है और भौतिक प्रभाव जैसे ग्लेशियरों का पिघलना या चरम मौसमी परिस्थितियां अक्सर गैर-रैखिक होती हैं, इसलिए तापमान बढ़ने और लोगों, समाजों और अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव के बहुत अधिक गैर-रैखिक होने की संभावना है। इसका मतलब है कि 3 डिग्री सेल्सियस वृद्धि पर दुनिया 1.5 डिग्री सेल्सियस की दुनिया से बहुत खराब होगी।