वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में एक साल पहले घटी अजीबोगरीब घटना का रहस्य सुलझाया |

वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में एक साल पहले घटी अजीबोगरीब घटना का रहस्य सुलझाया

वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में एक साल पहले घटी अजीबोगरीब घटना का रहस्य सुलझाया

वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में एक साल पहले घटी अजीबोगरीब घटना का रहस्य सुलझाया
Modified Date: June 27, 2025 / 05:30 pm IST
Published Date: June 27, 2025 5:30 pm IST

(क्लैंसी विलियम जेम्स, कर्टिन विश्वविद्यालय)

मेलबर्न, 27 जून (द कन्वरसेशन) पिछले साल 13 जून को दोपहर के समय मैं और मेरे सहकर्मी जब अंतरिक्ष के रहस्य खंगालने की कोशिश में आकाश की गहराई में झांक रहे थे, तब हमें लगा कि हमने एक अजीबोगरीब और रोमांचक वस्तु खोज निकाली है। एक विशाल रेडियो दूरबीन की मदद से हमने बेहद तीव्र रेडियो तरंगों को देखा, जो हमारी आकाशगंगा के भीतर से आती हुई प्रतीत हो रही थीं।

एक साल के अनुसंधान और विश्लेषण के बाद हम आखिरकार इन रेडियो तरंगों के स्रोत का पता लगाने में कामयाब रहे हैं। ये तरंगें हमारी उम्मीद से कहीं ज्यादा करीब से आई थीं।

*** नये ‘डिटेक्टर’ ने की रेडियो तरंगों की खोज

-हमारा उपकरण पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के इनयारिमन्हा इल्गारी बुंडारा में स्थित था, जिसे मर्चिसन रेडियो-खगोल विज्ञान वेधशाला के रूप में भी जाना जाता है। यहां लाल रेगिस्तानी मैदानों के ऊपर का आकाश एकदम साफ दिखाई देता है।

हम रेडियो दूरबीन में एक नये ‘डिटेक्टर’ का इस्तेमाल कर रहे थे, जिसे ‘ऑस्ट्रेलियन स्क्वायर किलोमीटर एरे पाथफाइंडर’ या एएसकेएपी के रूप में जाना जाता है, ताकि दूर की आकाशगंगाओं से आने वाले दुर्लभ रेडियो संकेतों की खोज की जा सके, जिन्हें ‘फास्ट रेडियो बर्स्ट’ कहा जाता है।

हमें तीव्र रेडियो तरंगें आती हुई दिखाई दीं। आश्चर्यजनक रूप से इन तरंगों की अलग-अलग तरंग दैर्ध्य की निम्न और उच्च आवृत्ति के बीच समय के अंतर के कोई संकेत नहीं मिले। वैज्ञानिक भाषा में इस घटना को ‘डिस्पर्जन’ कहते हैं।

इसका मतलब यह है कि इन तरंगों की उत्पत्ति पृथ्वी से कुछ सौ प्रकाश वर्ष की दूरी पर हुई होगी। दूसरे शब्दों में कहें तो, अरबों प्रकाश वर्ष दूर से आने वाली अन्य तीव्र रेडियो तरंगों के विपरीत ये तरंगें हमारी आकाशगंगा के अंदर से आई होंगी।

*** सबसे चमकीली रेडियो तरंगें

-तीव्र रेडियो तरंगें ब्रह्मांड में पैदा होने वाली सबसे चमकीली रेडियो तरंगें होती हैं, जो एक मिलीसेकंड से भी कम समय में सूर्य की 30 वर्षों जितनी ऊर्जा उत्सर्जित करती हैं।

कुछ सिद्धांत कहते हैं कि ये तरंगें या तो ‘मैग्नेटर’ से उत्पन्न होती हैं या फिर मृत तारकीय अवशेषों के बीच ब्रह्मांडीय टकराव के दौरान निकलती हैं। ‘मैग्नेटर’ का मतलब विशाल, मृत तारों के अत्यधिक चुंबकीय केंद्र से होता है।

बहरहाल, ये रेडियो तरंगें जैसे भी उत्पन्न हों, इन्हें हमारे ब्रह्मांड में तथाकथित “मिसिंग मैटर” का मानचित्रण करने का एक सटीक जरिया माना जाता है।

जब हमने इन रेडियो तरंगों का गहराई से विश्लेषण करने के लिए फिर से इनके चित्रों पर नजर दौड़ाई, तो आश्चर्यजनक रूप से ये तरंगें गायब हो गईं। दो महीने की पड़ताल के बाद आखिरकार समस्या का पता चला।

दरअसल, एएसकेएपी 36 एंटेना से लैस ‘डिटेक्टर’ है, जो साथ मिलकर छह किलोमीटर व्यास को समेटने वाले एक विशाल जूम लेंस की तरह काम करते हैं। जिस तरह कैमरे के जूम लेंस से किसी चीज की बहुत करीब से तस्वीर खींचने पर वह धुंधली आती है, ठीक उसी तरह एएसकेएपी से इन तरंगों का चित्र लेने के कारण इनका स्पष्ट स्वरूप नहीं कैद किया जा सका। बहरहाल, विश्लेषण के दौरान कुछ एंटेना को हटाकर यानी हमारे “लेंस” के दायरे को कृत्रिम रूप से कम करके, हम आखिरकार इन तरंगों का चित्र उकेरने में कामयाब हुए।

*** आखिरकार कहां से हुई उत्पत्ति

-हमने पाया कि इन रेडियो संकेतों में बेहद चमकीली तरंगें शामिल थीं, जो एक सेकंड के कुछ अरबवें भाग तक टिकीं, जबकि कुछ मध्यम चमक वाली तरंगें भी मौजूद थीं, जिनकी कुल अवधि 30 नैनोसेकंड थी।

हमें पता था कि ये रेडियो संकेत किस दिशा से आए थे। इसके आधार पर हम लगभग 4,500 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद चीजों का अंदाजा लगाने में सफल रहे। हमने पाया कि ये संकेत जिस वक्त जिस दिशा से और जितनी दूरी से आए थे, उस समय वहां ‘रिले-2’ नाम का 60 साल पुराना उपग्रह मौजूद था।

‘रिले-2’ अंतरिक्ष में सबसे पहले प्रक्षेपित दूरसंचार उपग्रहों में से एक था। अमेरिका की ओर से 1964 में प्रक्षेपित यह उपग्रह 1965 तक सक्रिय था। 1967 में इस पर मौजूद उपकरण निष्क्रिय हो गए थे।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि ‘रिले-2’ से ये रेडियो तरंगें कैसे उत्पन्न हो सकती हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि कुछ ऐसे उपग्रह जिन्हें मृत माना जा चुका है, वे फिर से सक्रिय हो गए हैं। ऐसे उपग्रह “जॉम्बी सैटेलाइट” के रूप में जाने जाते हैं।

हालांकि, ये रेडियो तरंगें किसी “जॉम्बी सैटेलाइट” से नहीं उत्पन्न हुई थीं। ‘रिले-2’ पर मौजूद कोई भी उपकरण कुछ नैनोसेकेंड की तरंगें उत्पन्न करने में भी सक्षम नहीं था। यहां तक कि उस अवधि में भी नहीं, जब उपग्रह सक्रिय अवस्था में था।

हमारा मानना है कि ये तरंगें “इलेक्ट्रोस्टैटिक डिस्चार्ज” का नतीजा थीं। जब उपग्रह अंतरिक्ष में प्लाज्मा (विद्युत आवेशित गैसों) के संपर्क में आते हैं, तो वे आवेशित हो सकते हैं। यह संचित आवेश अचानक बाहर निकल सकता है, जिसके परिणामस्वरूप चमकीली रेडियो तरंगें पैदा होती हैं।

(द कन्वरसेशन) पारुल मनीषा

मनीषा

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