‘Tees Maar Khan history: नई दिल्ली। आपने भी यह कहावत जरूर कभी न कभी सुनी होगी। यह कहावत बहुत मशहूर है। तीस मार खां के बारे में जानने के लिए आपको 140 साल पीछे जाना पड़ेगा। दरअसल तीस मार खां नाम हैदराबाद के छठे निजाम मीर महबूब अली खां को उपाधि के तौर पर मिला था। क्योंकि उसने 30 टाइगरों का शिकार किया था।
आपने अक्सर लोगों के मुंह से यह सुनते होंगे कि ज्यादा तीस मार खां न बनो! या फिर वह अपने आपको बहुत तीस मार खां समझता है आदि। आपको बता दें कि कोई व्यक्ति जब बहुत ज्यादा बहादुरी दिखाता है या फिर असामान्य परिस्थिति का मुकाबला करता है तो अक्सर ऐसा ही कहा जाता है। जाहिर है कि ‘तीस मार खां’ होना बहादुरी का पर्याय है।
दरअसल तीस मार खां का इतिहास 140 साल पुराना है। दरअसल तीस मार खां नाम हैदराबाद के छठे निजाम मीर महबूब अली खां को उपाधि के तौर पर मिला था, जिन्होंने 30 टाइगरों का शिकार किया था। 1880 से 1890 तक उन्होंने जंगलों में कैंप किया था और इस दौरान तीस टाइगरों को मार डाला था। इसके चलते मीर महबूब अली को यह नाम मिला था और लोग उन्हें ‘तीस मार खां’ के नाम से जानने लगे थे।
बीते कुछ साल पहले इसी नाम से एक फिल्म भी बन चुकी है। हालांकि तीस मार खां इस इलाके में अकेले शिकारी नहीं थे। उनके जैसे कई लोग थे, जिन्होंने उस इलाके के जंगलों में हजारों की संख्या में टाइगर, तेंदुआ और अन्य जानवरों का शिकार किया था। धीरे-धीरे कुछ ही दशकों में ऐसी स्थिति बन गई कि टाइगर लुप्त ही हो गए। यही नहीं ‘तीस मार खां’ के ही पोते आजम जाह उनसे भी आगे निकल गए और 1935 में महज 33 दिनों में ही 35 चीतों को मार डाला था। यही नहीं महबूब अली खान से पहले हैदराबाद के 5वें निजाम अफजल-उद-दौला और ब्रिटिश सैन्य अधिकारी कर्नल जेफरी नाइटेंगल ने करीब 300 टाइगरों को मार डाला था।
फिलहार देश में हालात ऐसे बन गए हैं कि भारत को प्रोजेक्ट टाइगर चलाना पड़ा और हाल ही में अफ्रीका से भी कुछ टाइगर लाए गए थे। बता दें कि तीस मार खां के नाम को लेकर अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन हैदराबाद के निजाम मीर महबूब अली खां से जुड़े जो तथ्य मिलते हैं, उससे यही बात सही मालूम पड़ती है। हालांकि निजाम तीस मार खां सिर्फ शिकारी ही नहीं था बल्कि कविताएं भी वह लिखते थे। फारसी भाषा, तेलुगु और उर्दू में उन्होंने काफी कविताएं लिखीं।