खेत-खलिहान से निकलेगी छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी

खेत-खलिहान से निकलेगी छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी

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  • Publish Date - November 22, 2018 / 12:15 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:33 PM IST

छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों के लिए मतदान पूरा हो गया है। सूबे की करीब 76 फीसदी जनता ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। जाहिर है, नतीजों के इंतजार के बीच जीत-हार और सरकार बनाने के दावे शुरु हो गए हैं। दावों की सच्चाई का पता तो 11 दिसंबर को चलेगा, जब ईवीएम खुलेंगे, लेकिन इतना तय है कि छत्तीसगढ़ में इस बार के नतीजे चुनाव पूर्व तमाम कयासों और समीकरण को झुठलाने की स्थिति में नजर आ रहे हैं। कहा जा रहा था कि अजीत जोगी और बसपा के बीच गठबंधन मजबूत तीसरे विकल्प के रूप में सामने आएगा। यह भी माना जा रहा था कि गठबंधन कई सीटों पर बीजेपी-कांग्रेस का समीकरण बिगाड़ सकती है। इतना ही नहीं इस बात की भी गजब चर्चा थी कि गठबंधन के सहयोग के बिना किसी भी दल के लिए सरकार बनाना मुश्किल होगा, लेकिन पोलिंग के निपटने के बाद ऐसा कुछ होता दिख नहीं रहा है। इसके पीछे की बड़ी वजह राज्य के लोगों की तासीर है। यह बात भी प्रचलित है कि यहां के लोग भोले-भाले और सच्चाई पसंद हैं और उनकी भावनाओं को आसानी से बूझा जा सकता है। लोगों की तासीर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राजनीतिक विश्लेषक और जानकार छत्तीसगढ़ में चुनाव से पहले इस बात पर काफी जोर देते रहे हैं कि प्रदेश में बदलाव की हवा बह रही है और कांग्रेस को सत्ता विरोधी लहर का फायदा मिल सकता है। स्वाभाविक है कि तमाम लोग जनता की नब्ज को टटोलने के बाद ही ऐसे दावे कर रहे है, अगर इस बात में सच्चाई है तो मतदाता अपने स्वभाव के मुताबिक स्पष्ट सरकार चुनने की हामी है। लिहाजा त्रिशंकु विधानसभा के दावे की संभावना खारिज हो जाती है।

दूसरी तरफ केवल सत्ता विरोधी लहर के भरोसे मजबूत सरकार बनाने के दावे पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि राज्य में मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह की अगुवाई में बीजेपी की 15 बरस से सरकार है। सत्ता विरोधी लहर तो 15 साल के शासनकाल में स्वाभाविक है। गौर करने लायक बात यह भी है कि राज्य में मुखिया रमन सिंह के खिलाफ कोई नाराजगी भी नहीं दिखती, बल्कि बीजेपी रमन सिंह के चेहरे को आगे करके वोट बटोरती है। रमन सिंह के कार्यकाल में राज्य में विकास भी हुआ है। सरकार ने यहां के गरीबों और आदिवासियों के पेट की चिंता की है। अगर जनता सरकार के मुखिया से खुश है तो जाहिर है कि मतदाता उनको स्पष्ट बहुमत देने के पक्ष में होंगे।

कुल मिलाकर, इन दोनों परिस्थितियों में त्रिशंकु विधानसभा के आसार नजर नहीं आते। ऐसे में यह बात तो स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ में किसी भी पार्टी को स्पष्ट जनादेश के साथ सरकार  बनाने का मौका मिलने वाला है।

चुनाव पूर्व ऐसे कयासों के बीच जब प्रचार प्रसार ने जोर पकड़ा तो अचानक एक नए मुद्दे की एंट्री हुई।ई, जिसने पूरे प्रचार को अपनी तरफ मोड़ दिया और वो था किसान और खेती किसानी का मुद्दा। कांग्रेस ने जैसे ही अपने घोषणा पत्र में ऐलान किया कि वो किसानों का कर्जा माफ करेंगे, धान का समर्थन मूल्य 25 सौ रुपए देंगे और बिजली बिल आधा कर देंगे। चुनाव में विकास बनाम विनाश का ट्रेंड ही बदल गया। हालांकि पहले चरण के कुछ दिनों पहले ही कांग्रेस ने इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल किया, लिहाजा पहले चरण की 18 सीटों के चुनाव में इसकी ज्यादा चर्चा नहीं हुई, लेकिन दूसरे चरण की 72 सीटों के चुनाव ने प्रचार को खेती किसानी और किसानों पर केन्द्रित कर दिया।

कांग्रेस ने इसे ब्रम्हास्त्र मानते हुए जोर-शोर से प्रचारित किया। बीजेपी की राज्य और केन्द्रीय नेतृत्व को भी इस मुद्दे ने बेचैन किया और उन्हें सफाई तक देनी पड़ी कि कांग्रेस केवल झूठे वादे करती है। ऐसे में इतना तो तय है कि राज्य में इस मुद्दे ने असर दिखाया है। वैसे भी छत्तीसगढ़ खेती किसानी पर निर्भर राज्य है और जिन 72 सीटों पर दूसरे चरण में चुनाव हुए हैं, उसकी 60 फीसदी से अधिक आबादी खेती किसानी के भरोसे है। इस कारण से भी किसान के मुद्दे खूब जोर मारा है। छत्तीसगढ़ में कहा जाता है कि सत्ता की चाबी बस्तर से मिलती है, यानी बस्तर जीत लिया तो सत्ता मिलना तय माना जाता है, लेकिन इस बार लगता है कि सत्ता की चाबी खेत खलिहान और किसानों के हाथ से मिलेगी।

समरेन्द्र शर्मा,

कंटेंट हेड, IBC24