IBC Open Window: हिंदुत्व का झंडा बुलंद करने वालों में शुमार हो रहे जनजातिए इलाके, उदयपुर की घटना के विरुद्ध बंद, रैली, प्रदर्शन का नेतृत्व भी इन हाथों में

  •  
  • Publish Date - July 1, 2022 / 03:44 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 11:48 AM IST

बरुण सखाजी

सह-कार्यकारी संपादक, आईबीसी-24

उदयपुर की शर्मनाक घटना के विरुद्ध देशभर में प्रदर्शन और विरोध का दौर चल रहा है। बंद, विरोध, जुलूस, रैली आदि के बीच एक तरफ समूचे भारत में सांप्रदायिक उन्माद जैसे हालात हैं तो वहीं राजनीति अपनी अलग ही चाल चल रही है। उदयपुर की घटना में अब छत्तीसगढ़ रायपुर में भी बंद का आह्वन किया जा रहा है। इससे पहले सुकमा, बस्तर, दंतेवाड़ा जैसे दूरस्थ आदिवासी अंचलों में बंद कॉल किया गया था और इसका अच्छा असर भी देखा गया। लेकिन इस पर ध्यान दीजिए कि धुर जनजातिये इलाकों में हिंदुत्व की ध्वजा फहराने का कारण क्या है?

आदिवासी नहीं… नागवंशी वीर-क्षत्रिय हैं गोंड आदिवासी

होने को तो यह साधारण बंद है। उदयपुर की घटना के विरुद्ध एक आम बंद। लेकिन सिर्फ यही नहीं है। बीते कुछ वर्षों से संघ और उसकी राजनीतिक, सामाजिक अनुषांगिक संस्थाएं या दक्षिणपंथी विचारों की पोषक संस्थाएं सतत आदिवासी अंचलों पर नजर  बनाए हुए हैं। यह नए भारत का नया तरीका है। हिंदुत्व के मसलों को आदिवासी समुदायों से लीड कराया जा रहा है। भारत के मामलों को इन समुदायों के हाथों उठाया जा रहा है। बेशक इसमें  कोई आफत या आपत्ति की बात तो नहीं है, लेकिन जो दिख रहा है वह सामान्य भी नहीं है। धर्मांतरण भारतीय आदिवासी समुदाय में व्याप्त सौ साल से भी अधिक पुरानी समस्या है। हजारों लोगों ने अपनी  आस्था बदली, लेकिन जीवनशैली भारतीय ही रही। सरकारों के प्रयासों ने इनके रहवास इलाकों में पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। नतीजे के रूप में यहां न अस्पताल पहुंच पाए, न जीवन उपयोग के अन्य संसाधन। तब ये स्वाभाविक रूप से धर्मांतरण की उर्बरा भूमि बनते चले गए। यहां एक हाथ में सेवा दूसरे में धार्मिक प्रतीक लेकर अनेक धर्मांतरण कराने वाली संस्थाएं सक्रिय हुईं। अस्पतालों, स्कूलों की शकल में आस्था परिवर्तन केंद्र विकसित हुए। सौ साल में हजारों को हिंदुस्तान से विलग कर दिया गया। बावजूद इसके जीवन जीने का ढंग नहीं बदला। खानपान, रोजी-रोजगार और भीतर का विश्वास फिर-फिर लौटता रहा।

IBC Open Window Special: द्रोपदी मुर्मू शुरुआती चित्रों में मंदिर में झाड़ू लगाती क्यों नजर आ रही हैं..? क्यों पटनायक जा पहुंचे पॉप जॉन पॉल की शरण में… जानिए

अब नए भारत में  आस्थाओं का युद्ध अपने पूरे उत्कर्ष पर है। बाहरी शक्तियों की पूरी नजर है। जहां जैसे विघ्नसंतोषी नजर आते हैं, उनका पोषण-खुराक प्रारंभ हो जाती है। अंदर के हाथों बाहर से पोषण भारत की दुखती रग है। यह इसलिए हुआ, क्योंकि सरकारों ने इसे होना नहीं माना। परंतु नए भारत में ऐसा न हो, इसकी कोशिश में ही यह सारे कदम उठाए जा रहे हैं। संभव है कि आने वाले कुछ ही वर्षों में सबसे ऊंचा और सबसे ज्यादा उजला हिंदुत्व का झंडा जनजातिय समुदाय के हाथ में नजर आए। इसे सही और गलत के खांचे में डालने की जरूरत नहीं है, लेकिन हो रहे बदलाव को देखने और समझने के साथ महसूस करने की जरूर जरूरत है। जरा बैक जाकर सोचिए, तब जूदेव जशपुर, कुनकुरी के भीषण धर्मांतरण वाले इलाकों में चरण धुलाकर घर वापसी और घर पर भगवा झंडा का अभियान चलाते थे। ऐसे ही कोई प्रयास रहे होंगे, जिनके आज असर दिख रहे हैं।

Open Window by Barun Sakhajee: जो जरूरत का नहीं वह भी क्यों ढो रहे हो यार…