आदिवासी नहीं… नागवंशी वीर-क्षत्रिय हैं गोंड आदिवासी

आदिवासी नहीं... नागवंशी वीर-क्षत्रिय हैं गोंड आदिवासी : Nagvanshi Veer-Kshatriya are Gond tribals

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  • Publish Date - June 30, 2022 / 08:40 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 06:10 PM IST

नंदकिशोर शुक्ल

Gond tribals : जिन्हें आदिवासी कहकर छत्तीसगढ़िया पहिचान से अलग करने का कुत्सित कुचक्र रचा जाता है, उन वनवासी- छत्तीसगढ़ियों में सबसे बड़ा समूह गोंड-समुदायों का है, जो स्वयं को अधिकतर कोईतुर कहते हैं । जिसका अर्थ है क्षत्रिय याने योद्धा। सर्वप्रथम मुगलों ने उन्हें गोंड़ नाम से पुकारा जो बाद में वही शब्द सर्वत्र प्रचलित हो गया। गोंड़ शब्द मूलरूप से तेलुगु भाषा के “कोन्ड” शब्द का अपभ्रंश है। पेड़-पौधों से आच्छादित पर्वत को तेलुगु में कोन्ड कहते हैं। अर्थात तेलंगाना के पर्वतीय क्षेत्र में फैलते हुए निवासरत वनवासी क्षत्रिय योद्धाओं को कोन्ड कहा जाता था। उसी का अपभ्रंश यह गोंड़ नामाभिधान तो मुगलकाल में प्राप्त हुआ।>>*IBC24 News Channel के WhatsApp  ग्रुप से जुड़ने के लिए Click करें*<<

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Gond tribals : इन क्षत्रिय गोंड़वंश सरीखे अन्यान्य वनवासी समूहों को अंग्रेजों ने ट्राइबल याने आदिम जाति का ठप्पा लगा दिया। यद्यपि उन्होंने यहाँ के राष्ट्रीय समाज को कमजोर करने के उद्देश्य से हमारे विशाल वनवासी समूहों को मूल राष्ट्रीय-समाज से अलग करने का कुचक्र चलाया था तथापि वे, वनवासी समूहों की भारतीय-समाज से अभिन्न रहने की सनातन प्रक्रिया को रोकने में नाकामयाब ही रहे। इम्पीरियल गजेटियर ऑफ़ इण्डिया में उनकी यह नाकामयाबी दर्ज है कि “आदिम जाति के नेतागण, जो येन-केन-प्रकारेण इस संसार में उन्नति करते रहे और भूपति हो गए, अपने आप को विशेष सम्मानित जाति में गिनने लगे। वे प्राय: राजपूत बने। उनका पहला कदम यह होता था कि वे किसी ब्राह्मण से परामर्श करें कि वह उनके लिए विशेष पौराणिक पूर्वजों की कल्पना करे और उनका आपस में विवाह आदि होने लगे। अन्तर्जातीय विवाह के द्वारा वे पूर्णतया उस समाज में खप गए और स्थानीय लोग उनको हिन्दू वर्गों में गिनने लगे। ” (खण्ड १ , पृष्ठ ३१२ ) |

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इस तथ्य का उदहारण है कालिंजर के क्षत्रिय राजा कीरत सिंह चंदेल की पुत्री दुर्गावती का गोंड़राजा दलपतिसाहि के साथ विवाह होना। एक और विचारणीय तथ्य उपलब्ध है। गढ़ा-मण्डला राजवंश से सम्बंधित तीन दस्तावेजी साक्ष्य अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। प्रथम रामनगर का शिलालेख, द्वितीय रूपनाथ झा लिखित संस्कृत दस्तावेज ‘गढ़ेशनृप वर्णनम्’ और तीसरा दस्तावेज है ‘गढ़ेशनृप वर्णन संग्रह श्लोका:’ जिसमें तेरह समकालीन कवियों द्वारा गढ़ा-मण्डला के राजाओं की प्रशंसा में लिखे गए १२६ श्लोकों का संग्रह है। यह तृतीय दस्तावेज पूना के भण्डारकर ओरियन्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट जर्नल के XXV||| PART ||| पृष्ठ २४९ में प्रकाशित है। जबकि दूसरा दस्तावेज गढ़ेशनृप वर्णनम् काव्य सन १९४० में नागपुर विश्वविद्यालय की शोध पत्रिका में प्रकाशित है । इनमें से किसी भी दस्तावेज में जातिवाचक संज्ञा ‘गोंड़’ का कहीं भी प्रयोग नहीं किया गया है और न ही कहीं भी यह लिखा गया है कि गढ़ा-मण्डला के राजा गोंड़ थे। बल्कि ‘गढेशनृप वर्णन संग्रह श्लोका:’ में लक्ष्मीप्रसाद दीक्षित द्वारा लिखित श्लोक क्रमांक ४० में स्पष्ट लिखा है कि गढ़ा राज्य के राजा ‘नागवंशी’ थे। श्लोक क्रमांक ४८ में भी विष्णु दीक्षित ने उन्हें नागवंशी होने का उल्लेख किया है।

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पौराणिक काल में पर्वतवासियों को ‘नाग’ कहते थे क्योंकि संस्कृत में पर्वत को ‘नग’ कहा जाता है। नगवासी याने पर्वतों पर बसने वाले के अर्थ में ‘नाग’ शब्द रूढ़ हुआ, नगपुत्र नाग। नीलमत पुराण के अनुसार जलमग्न कश्मीर की भूमि नागवंशियों के लिए ही निर्मित की गई।