Nindak Niyre MP BJP pitching भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश की 47 आदिवासी आरक्षित सीटों पर फोकस करके 2023 और 2024 की रणनीति बना रही है। पार्टी चाहती है इन 47 में से अधिकतम वही जीते। चूंकि 2018 में भाजपा को मालवा और महाकोशल में मुंह की खानी पड़ी थी। जबकि कुल एसटी आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा महज 16 जीत पाई थी। इसके ठीक उलट 2013 में भाजपा ने इन 47 में से 31 सीटें जीती थी। पार्टी चाहती है एमपी में ऐसा आदिवासी चेहरा तैयार हो जाए जो मालवा या महाकोशल से भी ताल्लुक ऱखता हो। पार्टी आदिवासी नेतृत्व को खड़ा करने की कवायद में है। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारणी में यह एक अहम मसला है।
Nindak Niyre MP BJP pitching दिलीप सिंह भूरिया के बाद वैक्यूम
एमपी भाजपा में दिलीप सिंह भूरिया बड़ा आदिवासी चेहरा रहे हैं। वे भाजपा की ओर से झाबुआ से चुनाव लड़ते रहे हैं। लंबे समय तक कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया को पटखनी देते रहे हैं। उनकी बेटी निर्मला भूरिया विधानसभा में लड़ती रही हैं। मंत्री भी रह चुकी हैं। लेकिन दिलीप सिंह भूरिया के देहावसान के बाद से यहां वैक्यूम उभरा है।
इन आदिवासी नेताओं पर फोकस, लेकिन नतीजे अपेक्षित नहीं
फग्गन सिंह कुलस्तेः मंडला से आते हैं। पार्टी पुराने सिपहसालारों में शुमार हैं। केंद्र में मंत्री हैं। 1997 में लोकसभा जीते, लेकिन वे 1998 में विधानसभा लड़ना चाहते थे। मंडला की सीट निवास से आते हैं। लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। तभी से केंद्र की राजनीति कर रहे हैं। अभी उनका नाम भी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के लिए चल रहा है। संभव है 17 जनवरी 2023 को भाजपा अपनी राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में इस पर फैसला कर ले। कुलस्ते का भोपाल में कम आना-जाना इसकी बड़ी वजह है। पिछली बार जब जबलपुर सांसद राकेश सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था, तब भी कुलस्ते का नाम चला था। लेकिन वे चूक गए थे।
रंजना बघेलः मालवा से आने वाली पूर्व मंत्री रंजना बघेल बड़ी नेता रही हैं। वे जयस के खिलाफ लड़ती रही हैं। लेकिन 2018 में हार गईं, तब से राजनीतिक पटल से नदारत हैं। इसके बाद मालवा में टंट्या मामा को लेकर हुए विभिन्न कार्यक्रमों में भी रंजना प्रमुखता से उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाईं।
सुमेर सिंह सोलंकीः संघ के सबसे खास माने जाने वाले सोलंक खरगोन-खंडवा तरफ से आते हैं। इनके नाम भी प्रदेश अध्यक्ष के लिए जोरों से चल रहा है। राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक सोलंकी या तो प्रदेश अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं या इन्हें मोदी केबिनेट में जगह मिल सकती है। 31 जनवरी 2023 तक इसका फैसला हो जाएगा।
विजय शाहः निमाड़ क्षेत्र से आने वाले विजय शाह पुराने आदिवासी चेहरा हैं, लेकिन वे राजगोंड होने के कारण अधिक स्वीकार्य नहीं है। मंत्री हैं, पहले भी रह चुके हैं। निमाड़ के बाहर अधिक प्रभाव नहीं।
ओमप्रकाश धुर्वेः पुराने आदिवासी नेता हैं। मंत्री रह चुके हैं। राष्ट्रीय पदाधिकारी भी बनाया गया है, लेकिन प्रादेशिक स्तर पर स्वीकार्यता नहीं बना पा रहे।
बिसाहू लाल सिंहः हाल ही में सिंधिया खेमे के साथ भाजपा में आए हैं। अनूपपुर से चुनाव लड़ते हैं। वर्तमान में मंत्री हैं। क्षेत्र में अच्छा काम है। महाकोशल का चेहरा बन सकते हैं, लेकिन कांग्रेस से आए अधिक दिन नहीं होने के कारण पार्टी हिचकिचा सकती है।
गजेंद्र सिंह पटेलः खरगोन लोकसभा से सांसद हैं। भाजपा की प्रदेश अजजा इकाई के अध्यक्ष हैं। सक्रियता कम नजर आती है। संभावनाएं हैं, लेकिन पार्टी इन्हें राज्य स्तर पर नहीं उतार पा रही। केंद्रीय मंत्रिमंडल में एमपी कोटे से जा सकते हैं।
संपतिया उइकेः महाकोशल से उभरी हैं। राज्यसभा भेजा गया। कुलस्ते के विकल्प के रूप में मंडला से देखा जा रहा है। लेकिन इनकी प्रभाव और दौरे भी कम ही नजर आते हैं। महिला, आदिवासी, महाकोशल का होने का लाभ ले सकती हैं। भाजपा महाकोशल या मालवा से आदिवासी चेहरा चाहती है।
नरेंद्र मरावीः ये भी महाकोशल से ही आते हैं। पढ़े-लिखे नौजवान हैं। लेकिन चुनावी चेहरा नहीं बन पा रहे। पार्टी भरपूर मौके दे रही है। एक बार शहडोल से कांग्रेस की राजेश नंदिनी से हारे फिर पुष्पराजगढ़ विधानसभ में फुंदेला मार्को के हाथों हार का सामना करना पड़ा। पार्टी चाहती है यह पढ़े लिखे युवा आदिवासी चेहरे हैं। जो भाजपा की तासीर के अनुकूल है। लेकिन चुनाव नहीं जीतने के कारण इन्हें लेकर अजमंजस है। अजजा आयोग के अध्यक्ष हैं।
ज्ञान सिंहः महाकोशल क्षेत्र के ज्ञान सिंह बड़े आदिवासी चेहरा रहे हैं। आरक्षित सीट से जीत के अलावा वे सामान्य से भी जीत चुके हैं। लेकिन पार्टी ने उनका टिकट काट दिया। इससे आहत हैं। पार्टी उन्हें लेकर अधिक नहीं सोचती।
हर्ष चौहानः वर्तमान में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष हैं। मालवा से ताल्लुक रखते हैं। सौम्य छवि के व्यक्ति हैं।
कुछ और नामः एमपी की सियासत में आदिवासी चेहरों में प्रेम सिंह पटेल, मीना सिंह, सुलोचना रावत जैसे नाम भी हैं। लेकिन इनका प्रभाव अपने क्षेत्र से आगे कहीं नजर नहीं आता।
ऐसे में पार्टी के सामने आदिवासी चेहरा तैयार करने का विकल्प बहुत कम बचा है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं, पार्टी को चाहिए कि वह आदिवासी चेहरे तो तैयार करे ही साथ ही उन्हें शक्ति संपन्न बनाए। ताकि वे अपने काम करवा सकें और अपने समाज के लिए मजबूत चेहरा बनकर उभरें। पार्टी में फैसलों के लेकर बनने वाली कोर टीम में उनका दायित्व बढ़ना चाहिए।