Barun Sakhajee New Column for insights, analysis and political commentary
Barun Sakhajee,
Asso. Executive Editor
बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक
शरीर में कोई ऐसी बीमारी लग जाए जो खुद भले ही बीमारी न हो, लेकिन बीमारियों की वजह हो तो ऐसा ही होता है। कांग्रेस बार-बार अपनी स्थिति को ठीक करने की कोशिश करती है। अपने वर्किंग व बयान कल्चर को ठीक करती है, किंतु कोई ऐसा हो जाता है, जिससे सब किया धरा रह जाता है। पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल का गीता में जिहाद की शिक्षा का बयान कुछ ऐसा ही है। यह एक बड़ी बौद्धिक चर्चा है। शिवराज पाटिल ने सही कहा या गलत कहा यह मसला नहीं। क्योंकि वे कोई धर्म शिक्षक नहीं न वे दार्शनिक हैं। इसलिए उनके कथन को किसी दूसरी दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। यहां स्पष्ट नजरिया है कि वे एक राजनेता हैं। और यहां जो कथन दे रहे हैं वह जिहाद की व्याख्या नहीं बल्कि मुस्लिम तुष्टिकरण है। भाजपा के हिंदुत्व के उभार पर हमला है, जो किसी न किसी रूप में सनातन पर भी हमला है। जैसे तलाके बिद्दत पर सुनवाई चल रही थी तो कपिल सिब्बल ने हिंदुओं में नियोग की तुलना इससे कर दी थी। यह तुलनाएं या बयान सिर्फ और सिर्फ चिढ़ाने के लिए दिए जाते हैं। इनकी दार्शनिक व्याख्याएं करने की कोई इच्छा नहीं होती।
कांग्रेस इस दौर में सिर्फ सांगठनिक बिखराव से ही नहीं गुजर रही बल्कि वह खासी अनुशासनहीनता और आत्मविश्वास में भारी कमी से भी जूझ रही है। इसकी वजह साफ है, क्योंकि कांग्रेस का कोई सुस्पष्ट राष्ट्रीय विचार न है न इसे कोई बनाने की मुकम्मल कोशिश है। कोई ऐसी केंद्रीय वैचारिक इकाई अपनी नहीं विकसित हो पाई। जब सत्ता में रहती है तो सामाजिक कोलाज को अपनी तरह से ओढ़ती बिछाती है और जब सत्ता से बाहर रहती है तो वामपंथ के वजन से लद जाती है।
एक तरफ राहुल गांधी अपनी पदयात्रा कर रहे हैं। लोगों के प्रति अपना कमिटमेंट दिखा रहे हैं। रोज नई-नई राजनीतिक प्रतिबद्धताएं उभर रही हैं। हाल ही में संगठन को एक करने अध्यक्ष बने हैं। सभी तरह से सकारात्मक हो रहे हैं, लेकिन शिवराज पाटिल का बयान फिर से सारे किए धरे पर पलीदा लगा गया। कांग्रेस को चाहिए ऐसे लोगों को चिन्हित करें और इन्हें सार्वजनिक राजनीतिक रूप से दंडित करें। यूं नहीं कि बयान से सिर्फ किनारा किया जाए।