#NindakNiyre: भागवत की DNA थ्योरी में छिपा है अखंड भारत का रहस्य!

NindakNiyre: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखंड भारत वाले नारे में वह भारत है जो सदियों पहले वास्तव में अस्तित्व में था। जिसे किसी एक राजनीतिक सत्ता से भले ही प्रशासित नहीं किया जा रहा था, लेकिन सांस्कृतिक और सामाजिक सत्ता से संचालित जरूर किया जा रहा था। इसके कोई राजनीतिक निहितार्थ भी हैं, लेकिन सामाजिक निहितार्थों को ज्यादा तवज्जो देनी चाहिए।

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  • Publish Date - November 16, 2022 / 04:18 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:52 PM IST

बरुण सखाजी, राजनीतिक विश्लेषक

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखंड भारत वाले नारे में वह भारत है जो सदियों पहले वास्तव में अस्तित्व में था। जिसे किसी एक राजनीतिक सत्ता से भले ही प्रशासित नहीं किया जा रहा था, लेकिन सांस्कृतिक और सामाजिक सत्ता से संचालित जरूर किया जा रहा था। इसके कोई राजनीतिक निहितार्थ भी हैं, लेकिन सामाजिक निहितार्थों को ज्यादा तवज्जो देनी चाहिए।

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में संघ के सर संघसंचालक मोहन भागवत का काबुल से लेकर चीन तक के लोगों का डीएनए एक बताना सामान्य घटना नहीं है। संघ राजनीतिक रूप से भाजपा के रास्ते व्यवस्था में है, लेकिन सामाजिक रूप से दुनिया का सबसे बड़ा संगठन है। ऐसे में संघ की कोई बात सिर्फ राजनीतिक चश्मे से देखने की बजाए इसे व्यापक अर्थों और अभिप्रायों के साथ देखना चाहिए।

मोहन भागवत ही नहीं संघ के शुरुआती प्रमुख लक्ष्यों में अखंड भारत का एजेंडा साफ है। इस एजेंडे के पूरे होने में लाख संदेह हों, लेकिन इसका अरमान रखना गलत नहीं। सारी दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम कहने वाला भारत अखंड भारत की कल्पना क्यों नहीं कर सकता। जबकि इसमें तो पूरी दुनिया शामिल भी नहीं।

असल में वर्तमान की व्यवस्थाओं में ज्यादातर बातें चुनावी राजनीतिक शक्तियों के हाथ में हैं। इसका दुष्परिणाम ये है कि हर किसी को अपने अगले चुनाव की चिंता होती है। दुनिया के लगभग सभी राष्ट्र निर्वाचन पद्धति से चल रहे हैं। कुछेक हैं जो राजशाही से चलते हैं तो उन्हें दुनिया तानाशाही कहती है। ऐसे में संघ की इस बात का आशय समझना कठिन है।

आने वाला समय सीमाओं का है। आज ही जारी हुई आबादी की सूची में अब दुनिया में 8 सौ करोड़ लोग हो गए हैं। जबकि भारत में 138 करोड़। इस आबादी की रफ्तार कितनी ही क्यों न हो, लेकिन 2050 तक यह 166 करोड़ पहुंच जाएगी। आज जब हम 2022 में यह कह रहे हैं तो भले ही दूर लगता हो, लेकिन बीते 28 वर्ष को देखेंगे तो यह नजदीक लगेगा। सोचिए 1994 में आप कैसे थे? जब आप ऐसा सोचेंगे तो 2050 की कल्पना भी स्वतः हो जाएगी। जो हमने देखा है वह सच लगता है और जो हम नहीं देख पा रहे वह झूठ। लेकिन वास्तव में वह झूठ होता नहीं।

इस आबादी के गुणा-भाग, जरूरत, रहवास इत्यादि को देखें तो भारत का भूभाग कम पड़ेगा। जीवन संकट हुआ तो झगड़े के अनेक कारण बनेंगे। संघर्ष में सबसे अहम भूमिका सीमाएं निभाएंगी। चीन का भूखा आदमी भारत में और भारत का भूखा चीन में घुसने की कोशिश करेगा। ऐसे में भारतीय भूभाग को सहमतियों के माध्यम से विस्तारित करना अभी से जरूरी। अखंड भारत असल में इस दिशा की पहल है।

बेशक, इतिहास में भी डीएनए इसी दिशा में था। कई सारे शोध ह्युमन बॉडी, हैबिट, हिस्ट्री पर चल रहे हैं। समझ आता है कि एशिया का आदमी कमोबेश एक ही डीएनए का है। संघ अखंड भारत की बात राजनीतिक रूप से नहीं, बल्कि अब डीएनए के जरिए सामाजिक, सांस्कृतिक रूप से करने की ओर है।

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