NindakNiyre: क्या राहुल ने आत्मघाती कदम उठा लिया या कि भाजपा को और मौके दे दिए हैं, चलिए सोचते हैं…

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  • Publish Date - August 13, 2025 / 08:17 PM IST,
    Updated On - August 13, 2025 / 08:18 PM IST

Rahul Gandhi on Election Commission || Image- ANI News File

बरुण सखाजी श्रीवास्तव, सह-कार्यकारी संपादक, IBC24

दुनिया के सर्वाधिक क्षमतावान चुनाव आयोग पर प्रश्न लगाना एक भारतीय को सदमे में ला सकता है। ला भी रहा है। वह चिंता में है, आखिर ये हो क्या रहा है। कुछ मुट्ठीभर लोग भ्रमित हुए भी हैं। उनका विश्वास आयोग पर हलका महीन हो रहा है, किंतु विश्वास बरकरार है। कुछ लोग इसलिए चिंतित हैं क्योंकि उन्हें लगता है राहुल जैसी देश की बड़ी आवाज अगर कह रही है तो इसमें कोई तो दम होगी। भाजपा बैकफुट पर है, जैसे आयोग यही चलाती है। इन सबके बीच मैं इसे दूसरे नजरिए से देखना और आपको दिखाना चाहता हूं। कांग्रेस, सहयोगी दल, राहुल और अन्य सभी समर्थकों का यह अपरिपक्व कदम है। लेकिन मैं मानता हूं यह बड़ा परिपक्व कदम है। क्योंकि इसके बाद से देश को रिऑर्गेनाइज होने, नए सुधारों को और तेजी से लागू करने जैसे अपरिहार्य कदमों को और आगे बढ़ाने का मौका मिल रहा है। नागरिकता, आयोग, चुनाव आदि मूल विषयों से जुड़े सुधारों के समर्थन में लोगों का समर्थन बढ़ रहा है। आइए समझते हैं क्या-क्या फायदे इसके होने वाले हैं।

1. आयोग अब तक वोटरलिस्ट को लेकर विभिन्न कागजातों पर निर्भर है, जो इस घटना के बाद आत्मनिर्भर बनने की जरूरत महसूस कर रहा है।
2. पिछले 70 वर्षों में अल्पसाक्षर, निरक्षर भारत, वोटरलिस्ट और बैलेटपेपर की सबसे बड़ी हितग्राही कांग्रेस ही रही है, जो ईवीएम के आते ही पिछड़ती गई है, और अब वोटरलिस्ट भी मजबूत बनने लगेगी तो नुकसान किसे होगा, ये राहुल नहीं समझ पाए।
3. आयोग को कोर्ट के समान शक्तियों की आवश्यकता है, यह बात लोगों के मन में मजबूती से आ रही है, जाहिर है आयोग को शक्ति संपन्न बनाने में भाजपा को दिक्कत नहीं होगी। आयोग जब निर्वाचन के समय सख्ती करेगा, नगदी पकड़ेगा, उलूल-जुलूल बयान सुनेगा, देखेगा तो आपराधिक मामले बनाएगा, चुनाव प्रक्रिया से बाहर करने की शक्ति हासिल कर लेगा तो क्षेत्रीय मूढ़ दलों की पैदावार और शक्ति संपन्नता कम होती जाएगी।
4. आयोग को अपनी वोटरलिस्ट नागरिक अधिकार की तरह तय करने और नागरिकता देने अथवा जांचने के अधिकार देने की जरूरत महसूस होगी, ऐसा होते ही सबसे ज्यादा नुकसान किसे होगा? सब जानते हैं।
5. मौजूदा सरकार 9 साल से नागरकिता पर कड़ा कानून लाना चाहती है, इस पूरे हल्ले से यह रास्ता सुलभ हो रहा है।
6. एक देश एक चुनाव की कवायद गति पकड़ेगी।
7. परिसीमन आयोग ज्यादा जल्दी और प्रामाणिक काम करे, इसके लिए तैयारी करने की उर्बरा तैयार हो रही है। इससे आबादी ही इकलौता आधार बनेगी, तब कौन से राज्य या आबादियां देश की चिंता करेंगी।
8. इस दौरान हो रही फंडिंग की जांच के लिए सरकार और मजबूत, लोगों की अपेक्षा वाली बनती जा रही है, स्वाभाविक है विदेशी फंडिंग की और गहरी जांच होगी। हो सकता है बड़े खुलासे सामने आएं, जिनकी एजेंसियों ने भी कल्पना न की हो।
9. जब आयोग से हम इतनी अपेक्षा करते हैं तो आयोग भी जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा करेगा, यानि सुलझे, सधे, गैरआपराधिक और फितूरी बयानबाजियों से दूर लोगों के लिए सियासी रास्ता ज्यादा फेवरेबल बनाने पर काम होगा।
10. सरकार और भाजपा और भारत के लोगों को एक मौका दिया जा रहा है, ज्यादा सटीकता से अंक, आंकड़ों के साथ मैदान में आकर सन साठ, सत्तर, के चुनावों की धांधलियां सार्वजनिक की जाएं। जब ये सामने आएंगी तो आयोग को और मजबूत बनाने की वकालत भी बढ़ेगी।
11. आयोग का अपना कोई मैनपॉवर नहीं होता, ऐसे में एक पूरी इकाई खड़ी करने की जरूरत पड़ेगी। जाहिर इससे और पारदर्शिता आएगी।

निष्कर्ष

ये कोई खोजे-बीने-चुने-फिल्टर्ड पॉजिटिव प्वाइंट्स नहीं हैं। आप लिंक करके देखिए, यकीन होगा, क्यों पूरी सरकार इस मामले को और गरम होने देना चाहती है। जब पूरी तरह से हाइप हो जाएगी, तब सरकार नए कानूनों के साथ राहुल और उनके सभी दलों से समर्थन मांगकर ऐसी व्यवस्था की वकालत करेगी जिसमें ये सब बंद हो जाए। तब एक्सपोज कौन होंगे, तब देखेंगे। फिलहाल आयोग को मजबूत बनाने और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए जनमत तैयार होने दीजिए और सरकार पर दबाव बनाइए के वह इसे सर्वशक्ति संपन्न बनाए।

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