नयी दिल्ली, 10 अगस्त (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है कि मोजर बेयर इंडिया लिमिटेड के पूर्व निदेशक रतुल पुरी और उनकी मां नीता पुरी को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के मास्टर परिपत्र तहत ”जानबूझकर चूक करने वाला” के रूप में वर्गीकृत करना कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है।
न्यायमूर्ति सी हरिशंकर और न्यायमूर्ति अजय दिगपॉल की खंडपीठ ने बैंक ऑफ बड़ौदा (बीओबी) और पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) की अपीलों को खारिज करते हुए यह आदेश पारित किया।
पीठ ने कहा कि ”जानबूझकर चूक करने वाला” घोषित करना कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है, क्योंकि बैंक यह साबित करने में विफल रहे हैं कि संबंधित लेनदेन में उधार ली गई धनराशि शामिल थी, जिसे जानबूझकर गबन किया गया था।
पीठ ने कहा, ”अधिकारियों को हर स्तर पर इस तथ्य के प्रति सजग रहना होगा कि मास्टर परिपत्र के तहत किसी को जानबूझकर ऋण न चुकाने वाला घोषित करने से उसकी ‘सिविल मृत्यु’ हो सकती है।”
सिविल मृत्यु एक अवधारणा है, जिसके तहत कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से जीवित रहता है, लेकिन कुछ उद्देश्यों के लिए उसे कानूनी रूप से मृत माना जाता है। उसके अधिकतर कानूनी अधिकार खत्म हो जाते हैं।
भाषा पाण्डेय
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