नवप्रवर्तन को बढ़ावा देने के लिये प्रतिस्पर्धा जरूरी, ग्राहकों को विकल्प मिलने चाहिए: वीजा

नवप्रवर्तन को बढ़ावा देने के लिये प्रतिस्पर्धा जरूरी, ग्राहकों को विकल्प मिलने चाहिए: वीजा

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  • Publish Date - November 11, 2020 / 12:12 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:50 PM IST

मुंबई, 11 नवंबर (भाषा) भुगतान प्रौद्योगिकी वैश्विक कंपनी वीजा ने बुधवार को कहा कि बाजार में सभी तरह की इकाइयों के बने रहने से नवप्रवर्तन को बढ़ावा मिलता है और ग्राहकों के लिये विकल्प उपलब्ध होते हैं। भारत सरकार के रूपे कार्ड को बढ़ावा देने पर जोर के साथ कंपनी ने अपनी प्रतिक्रिया में यह बात कही है।

एक दिन पहले मंगलवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकों से ‘केवल’ रूपे कार्ड को बढ़ावा देने को कहा।

वीजा के भारत और दक्षिण एशिया मामलों के क्षेत्रीय प्रबंधक टी आर रामचंद्रन ने कहा कि भारत में लोगों तक डिजिटल माध्यमों की पहुंच काफी कम है। कुल व्यक्तिगत खपत व्यय में केवल 18 प्रतिशत भुगतान में डिजिटल माध्यमों का उपयोग हो रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी को इसमें भूमिका निभानी है।’’ रामचंद्रन ने एक कार्यक्रम में यह बात कही। इस मौके पर वीजा और एचडीएफसी ने व्यापरियों के लिये ऐप का बेहतर संस्करण..स्मार्टहब मर्चेन्ट सोल्यूशंस 3.0’ पेश किये जाने की घोषणा की।

वीजा के साथ मास्टर कार्ड को रूपे कार्ड से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) ने वीजा और मास्टर कार्ड के विकल्प के रूप में रूपे कार्ड पेश किया है।

रामचंद्रन ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि भारत एक बड़ा देश है और पश्चिमी देशों के मुकाबले डिजिटल तरीके से भुगतान कम है।

उन्होंने कहा, ‘‘अगर आंकड़े को देखा जाए…निजी खपत व्यय में केवल 18 प्रतिशत भुगतान डिजिटल माध्यमों से होता है। मेरा मानना है कि क्षेत्र में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय सभी कंपनियों को काम करने की जरूरत है क्योंकि इससे नवप्रवर्तन को बढ़ावा और ग्राहकों को विकल्प मिलते हैं।’’

सीतारमण ने मंगलवार को भारतीय बैंक संघ (आईबीए) की सालाना आम बैठक को संबोधित करते हुए बैंकों से अपने ग्राहकों को केवल रूपे कार्ड को बढ़ावा देने को कहा।

उल्लेखनीय है कि 2012 में विकल्प के रूप में रूपे कार्ड पेश किये जाने के बाद से ही वैश्विक प्रतिद्वंद्वी कंपनियां परेशान हैं। भारत का मानना है कि वैश्विक भुगतान को सुगम बनाने वाली वैश्विक कंपनियां पैसा और आंकड़े देश से बाहर ले जाती हैं जिसे बचाया जा सकता है और देश में रखा जा सकता है।

भाषा

रमण मनोहर

मनोहर