झारखंड में बंदूक छोड़ चुके पूर्व-नक्सलियों को खूब भा रहा मछलीपालन

झारखंड में बंदूक छोड़ चुके पूर्व-नक्सलियों को खूब भा रहा मछलीपालन

झारखंड में बंदूक छोड़ चुके पूर्व-नक्सलियों को खूब भा रहा मछलीपालन
Modified Date: June 27, 2025 / 05:36 pm IST
Published Date: June 27, 2025 5:36 pm IST

गुमला, 27 जून (भाषा) झारखंड में पहले उग्रवाद का रास्ता अपना चुके कई लोग अब केंद्र सरकार की एक योजना के तहत बंदूक की जगह मछली पकड़ने का जाल थामने लगे हैं। इस पहल ने इस क्षेत्र को नक्सल-प्रभावित क्षेत्रों की सूची से हटाने में योगदान दिया है।

गुमला जिले के बसिया ब्लॉक के निवासी ज्योति लकड़ा वर्ष 2002 में वामपंथी उग्रवाद को छोड़ने से पहले एक नक्सली समूह का हिस्सा थे। आज, वे एक मछली चारा मिल चलाते हैं, जिससे उन्हें पिछले साल केंद्र की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) योजना के तहत करीब आठ लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ।

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अपनी चारा मिल के लिए 18 लाख रुपये का अनुदान प्राप्त करने वाले 41 वर्षीय लकड़ा ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘आस-पास मछली का चारा बेचने वाली कोई दुकान नहीं थी। ग्रामीणों को मछली का चारा खरीदने के लिए 150 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। इसलिए मैंने मछली चारा मिल लगाने का फैसला किया।’’

संयुक्त केंद्रीय और राज्य कार्यान्वयन के साथ वर्ष 2020-21 में शुरू की गई पीएमएमएसवाई योजना ने चार वर्षों में गुमला जिले में 157 व्यक्तिगत लाभार्थियों को प्रशिक्षित किया है।

जिला मत्स्य अधिकारी कुसुमलता ने कहा कि जिले में अब मछली पालन में लगे 8,000-9,000 परिवारों में से लगभग 25 प्रतिशत पूर्व नक्सली समर्थक या भागीदार हैं।

मई 2025 में गुमला को रांची जिले के साथ केंद्रीय गृह मंत्रालय की नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की सूची से हटा दिया गया। इस क्षेत्र में वामपंथी उग्रवाद में उल्लेखनीय गिरावट आई है।

स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि जहां कभी ‘दस में से आठ परिवारों’ की ‘क्रांतिकारी’ जीवनशैली हुआ करती थी, वहां के वीरान गांवों को फिर से आबाद किया गया है, स्कूल और अस्पताल दोबारा खोले गए हैं और कृषि गतिविधियां भी बहाल हो गई हैं।

एक और पूर्व नक्सली 42 वर्षीय ईश्वर गोप भी अब एक सरकारी तालाब से सालाना 2,50,000 रुपये की आठ क्विंटल मछलियां पकड़ते हैं, जिसे उन्होंने तीन साल की अवधि के लिए 1,100 रुपये में पट्टे पर लिया है।

पच्चीस एकड़ कृषि भूमि के मालिक गोप ने यह अहसास हुआ है कि मछली पालन पारंपरिक कृषि से अधिक लाभदायक है।

यहां पर मछली पालन की पहल 2009 में शुरू हुई थी जब राज्य मत्स्य विस्तार अधिकारी मुग्धा कुमार टोपो को यहां तैनात किया गया था।

अब राज्य की राजधानी रांची में रहने वाले टोपो ने कहा, ‘‘गुमला जिले के बसिया ब्लॉक में प्रवेश करना भी मुश्किल होता था क्योंकि नक्सली गतिविधियां अपने चरम पर थीं। करीब 50 परिवारों से बात करने के बाद एक प्रायोगिक परियोजना शुरू हो पाई थी।’’

सरकार ने इच्छुक परिवारों को 22 तालाब पट्टे पर दिए। इनमें से एक तालाब सुदूर वन क्षेत्र में था, जिसे सुरक्षा चिंता के कारण एक पूर्व नक्सली के सुपुर्द करना पड़ा था।

वर्ष 2007 तक सक्रिय नक्सल समर्थक रहे ओम प्रकाश साहू अब छह मछली तालाब संचालित करते हैं और सालाना 40 क्विंटल मछली पकड़ते हैं। वर्ष 2024 में उन्हें उन्नत मछली पालन तकनीक वाले तीन तालाबों के लिए सहायता मिली।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस योजना ने स्थानीय रोज़गार सृजन में ‘तीन गुना गुणक प्रभाव’ पैदा किया है और क्षेत्र से पलायन को कम करने में मदद की है।

पूर्व नक्सल समर्थक 51 वर्षीय लखन सिंह पहले धान की खेती करते थे लेकिन उन्होंने भी मछली पालन का रुख किया और अब अपनी जमीन पर बने पांच तालाबों में मछली पालन कर रहे हैं।

सिंह ने कहा, ‘‘मछली पालन धान की खेती से कहीं बेहतर है। प्रत्येक तालाब मेरे बच्चों की स्कूली शिक्षा के लिए भुगतान करने के लिए राजस्व पैदा करते हैं।’’

गुमला जिले के 12 ब्लॉक में लगभग 4,000 निजी स्वामित्व वाले और 360 सरकारी स्वामित्व वाले तालाब हैं जहां मछली पालन किया जा रहा है।

भाषा राजेश राजेश प्रेम रमण

रमण


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