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मुंबई, एक अक्टूबर (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को बैंकिंग नियमों में राहत और कारोबारी सुगमता के उपायों की घोषणा के बीच कहा कि वित्तीय स्थिरता केंद्रीय बैंक की सर्वोच्च प्राथमिकता बनी हुई है।
मल्होत्रा ने मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि आरबीआई यह सुनिश्चित करने को लेकर सजग है कि नियमों का पालन आर्थिक वृद्धि की राह में बाधा न डाले।
उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता है कि आपको इन उपायों को किसी तरह की शिथिलता के रूप में देखना चाहिए। हमारे लिए स्थिरता सर्वोपरि है। साथ ही हमें यह भी देखना होगा कि वृद्धि को कोई रोक न लगे।”
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि बैंकिंग गतिविधियों में विस्तार, अधिग्रहण वित्तपोषण, आईपीओ के लिए ऋण सीमा बढ़ाने, बुनियादी ढांचा वित्त के लिए एकल उधारकर्ता सीमा में बदलाव और शहरी सहकारी बैंकों के लिए लाइसेंसिंग खोलने के उपाय किए गए हैं।
मल्होत्रा ने इन कदमों को बेहद संतुलित, सोची-समझी और विचारपूर्ण कार्रवाई करार दिया।
उन्होंने बताया कि कई उपाय ऐसे हैं, जहां आरबीआई ने पहले किसी गतिविधि को अनुमति दी थी लेकिन अब उसे और विस्तार दे दिया गया है। इनमें अधिग्रहण वित्त और शेयरों के एवज में ऋण की सीमा बढ़ाने का कदम शामिल है।
आरबीआई गवर्नर ने यह भी स्पष्ट किया कि रिजर्व बैंक का उद्देश्य बैंकिंग कारोबार का सूक्ष्म प्रबंधन नहीं करना है।
मल्होत्रा ने वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद (एफएसडीसी) में हुई चर्चा का हवाला देते हुए कहा कि अब नियमों की समीक्षा हर पांच वर्ष में की जाएगी।
उन्होंने कहा, “परिस्थितियां बदलती हैं, समय बदलता है, आवश्यकताएं बदलती हैं, इसलिए नियम स्थिर नहीं रह सकते। इसलिए हम लगातार अपने नियमों की समीक्षा करते रहेंगे।”
मल्होत्रा ने आश्वासन दिया कि बड़ी कंपनियों की बैंकों के बहीखाते में हिस्सेदारी बीते दशक में 10 प्रतिशत तक कम हो चुकी है। हालांकि नियमों में छूट के बावजूद रिजर्व बैंक के पास वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त साधन मौजूद हैं।
इस अवसर पर आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एम. राजेश्वर राव ने कहा कि शेयरों के खिलाफ ऋण की 20 लाख रुपये की सीमा 1998 में तय हुई थी और अब इसे बढ़ाकर एक करोड़ रुपये करने का फैसला मुद्रास्फीति के लिहाज से कोई बड़ी वृद्धि नहीं है।
भाषा प्रेम प्रेम रमण
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