मुंबई, 15 अप्रैल (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मंगलवार को ‘काउंटरसाइक्लिकल’ यानी सुस्ती की स्थिति से निपटने के लिए तैयार बफर पूंजी (सीसीवाईबी) का उपयोग नहीं करने का निर्णय लिया है। केंद्रीय बैंक का मानना है कि मौजूदा परिस्थिति में इसकी जरूरत नहीं है।
आरबीआई ने सीसीवाईबी की रूपरेखा को फरवरी, 2015 में दिशानिर्देशों के रूप में पेश किया था। इसमें यह सलाह दी गई थी कि परिस्थितियों के अनुरूप सीसीवाईबी को लागू किया जाएगा और इसके बारे में पहले से घोषणा की जाएगी।
रूपरेखा में मुख्य संकेतक के रूप में ऋण-जीडीपी अंतर की परिकल्पना की गई है। इसका उपयोग अन्य पूरक संकेतकों के साथ किया जा सकता है।
आरबीआई ने बयान में कहा, ‘‘सीसीवाईबी संकेतकों की समीक्षा के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि इस समय इसको लागू करना जरूरी नहीं है।’’
इसे पेश 2015 में किया गया, लेकिन आरबीआई ने अबतक इसका उपयोग नहीं किया है।
आरबीआई के अनुसार, सीसीवाईबी व्यवस्था के दो उद्देश्य हैं। सबसे पहले, इसके लिए बैंकों को अच्छे समय में पूंजी बफर बनाने की आवश्यकता होती है, जिसका उपयोग कठिन समय में ऋण के प्रवाह को बनाए रखने के लिए किया जा सकता है।
दूसरा, यह बैंक क्षेत्र को अत्यधिक ऋण वृद्धि की अवधि में अंधाधुंध कर्ज देने से रोकने के लक्ष्य को भी हासिल करने में मददगार है।
वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के मद्देनजर केंद्रीय बैंक के प्रमुखों और पर्यवेक्षण प्रमुखों के समूह (जीएचओएस) ने प्रतिचक्रीय पूंजी उपायों पर एक रूपरेखा की शुरुआत की परिकल्पना की थी। जीएचओएस बासेल समिति के निर्धारित मानकों की निगरानी करने वाली इकाई है।
भाषा रमण अजय
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