(लक्ष्मी देवी ऐरे)
नयी दिल्ली, 31 दिसंबर (भाषा) भारत उन्नत केमिकल पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकी को अपनाकर प्लास्टिक कचरे की बढ़ती समस्या से निजात पाने के साथ पेट्रो रसायन उद्योग में इस्तेमाल होने वाले नाफ्था के आयात में भी बड़ी कटौती कर सकता है। चंडीगढ़ स्थित स्टार्टअप ‘पॉलीसाइकिल’ इस दिशा में अपने कदम बढ़ा रहा है।
वर्ष 2024 में ‘नेचर’ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, भारत हर साल करीब 93 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा करता है, जो दुनिया में सबसे अधिक है। इसमें बड़ा हिस्सा पॉलिथीन बैग और पाउच जैसे फ्लेक्सिबल पैकेजिंग का है। ये अधिकतर पॉलीओलेफिन होते हैं, जिन्हें छंटाई, सफाई एवं पिघलाकर प्लास्टिक दाने बनाने जैसे पारंपरिक तरीकों से प्रभावी पुनर्चक्रण कर पाना मुश्किल होता है।
पॉलीसाइकिल के संस्थापक और मुख्य कार्यपालक अधिकारी अमित टंडन ने इस समस्या के संदर्भ में कहा कि उनकी कंपनी ने एक दशक से अधिक के शोध के बाद ऐसी केमिकल रीसाइक्लिंग प्रौद्योगिकी विकसित की है, जो कम गुणवत्ता वाले प्लास्टिक को पायरोलिसिस ऑयल में बदलती है।
पायरोलिसिस ऑयल एक तरह का तरल ईंधन या कच्चा माल है जिसे पेट्रोकेमिकल उद्योग में दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है।
पॉलीसाइकिल की खास कॉटिफ्लो क्रैकर जनरेशन-6 प्रौद्योगिकी प्लास्टिक को नियंत्रित तापमान पर तोड़कर उपयोगी हाइड्रोकार्बन तेल बनाती है। इस प्रक्रिया से फूड-ग्रेड प्लास्टिक रेजिन, रिन्यूएबल केमिकल और यहां तक कि टिकाऊ विमान ईंधन भी तैयार किया जा सकता है।
टंडन ने कहा कि इससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता 75-90 प्रतिशत तक घटती है और कार्बन उत्सर्जन में 40 प्रतिशत से अधिक की कमी आती है।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत में मौजूद 57-59 लाख टन ऐसे प्लास्टिक कचरे से हर साल करीब 40 लाख टन पायरोलिसिस ऑयल बनाया जा सकता है। यह तेल सीधे तौर पर नाफ्था का विकल्प बन सकता है।
भारत ने 2024-25 में करीब 30 लाख टन नाफ्था आयात किया था, जबकि कुल खपत 1.2 करोड़ टन से अधिक है।
टंडन ने कहा कि इस प्रौद्योगिकी की उत्पादन लागत पारंपरिक जीवाश्म तेल से कम है और मांग अधिक होने के कारण बाजार में इसकी बेहतर कीमत भी मिल सकती है।
वर्ष 2016 में स्थापित कंपनी के 15-100 टन प्रतिदिन क्षमता वाले मॉड्यूलर प्लांट लगातार 24 घंटे चलते हैं और अमेरिका एवं यूरोप की तुलना में 50-75 प्रतिशत कम पूंजी लागत में लगाए जा सकते हैं।
पॉलीसाइकिल के संस्थापक ने विस्तारित उत्पादक जवाबदेही (ईपीआर) नियमों को सख्ती से लागू करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि भारत न सिर्फ अपनी जरूरत पूरी कर सकता है, बल्कि इस प्रौद्योगिकी से दुनिया भर में कचरे को संसाधन में बदला जा सकता है।
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