सेबी ने आईपीओ के बाद प्रवर्तकों की लॉक-इन अवधि घटाकर 18 महीने की

सेबी ने आईपीओ के बाद प्रवर्तकों की लॉक-इन अवधि घटाकर 18 महीने की

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  • Publish Date - August 17, 2021 / 05:42 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:55 PM IST

नयी दिल्ली, 17 अगस्त (भाषा) बाजार नियामक सेबी ने प्रवर्तकों के निवेश के लिए प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) के बाद न्यूनतम लॉक-इन अवधि को कुछ शर्तों के साथ तीन साल से घटाकर 18 महीने कर दिया है।

यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब कई कंपनियां शेयर बाजारों में सूचीबद्ध होना चाह रही हैं।

इसके अलावा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने समूह कंपनियों के लिए प्रकटीकरण संबंधित जरूरतों को भी सुव्यवस्थित किया है।

सेबी ने एक अधिसूचना में कहा कि यदि निर्गम का मकसद किसी परियोजना के लिए पूंजीगत व्यय का वित्तपोषण को छोड़ कुछ और है या बिक्री पेशकश है, तो प्रवर्तकों की कम से कम 20 प्रतिशत हिस्सेदारी 18 महीने के लिए लॉक-इन होगी।

फिलहाल यह लॉक-इन अवधि तीन वर्ष है।

पूंजीगत व्यय में अन्य के साथ सिविल कार्य, विविध अचल संपत्तियां, भूमि की खरीद, भवन, संयंत्र और मशीनरी आदि शामिल हैं।

इसके अलावा प्रवर्तकों की न्यूनतम 20 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी के लिए लॉक-इन अवधि को भी मौजूदा एक साल से घटाकर छह महीने कर दिया गया है।

नियामक ने इसके साथ ही प्रवर्तकों के अलावा अन्य व्यक्तियों द्वारा आईपीओ से पूर्व प्राप्त प्रतिभूतियों के लिये भी लॉक इन अवधि को आवंटन की तिथि से छह माह कर दिया है। वर्तमान में यह अवधि एक साल है।

इसके अलावा नियामक ने आईपीओ के समय खुलासा आवश्यकताओं को भी कम कर दिया है। आईपीओ लाने वाली कंपनी की समूह कंपनियों के बारे में पेशकश दस्तावेज में जानकारी दिये जाने की आवश्यकताओं को तर्कसंगत किया गया है। इसमें समूह की सूचीबद्ध और गैर- सूचीबद्ध शीर्ष पांच कंपनियों के वित्तीय खुलासे को छोड़ दिया गया है। यह जानकारी समूह कंपनियों के वेबसाइट पर उपलब्ध होगी।

सेबी के बोर्ड ने इस महीने की शुरुआत में इस संबंध में एक प्रस्ताव को मंजूरी देने के बाद यह कदम उठाया है। इसे प्रभाव में लाने के लिये सेबी ने पूंजी निर्गम और खुलासा आवश्यकता (आईसीडीआर) नियमों में संशोधन किया है।

भाषा

पाण्डेय महाबीर

महाबीर