रुपये में गिरावट के बावजूद कच्चे तेल में नरमी से महंगाई पर नहीं होगा खास असर: विशेषज्ञ

रुपये में गिरावट के बावजूद कच्चे तेल में नरमी से महंगाई पर नहीं होगा खास असर: विशेषज्ञ

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  • Publish Date - February 11, 2025 / 03:32 PM IST,
    Updated On - February 11, 2025 / 03:32 PM IST

नयी दिल्ली, 11 फरवरी (भाषा) डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में आ रही गिरावट के बावजूद देश में महंगाई पर खास असर पड़ने की आशंका नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसका कारण दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमतों में नरमी है।

उल्लेखनीय है कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में इस साल अबतक दो प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। छह नवंबर, 2024 को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद से डॉलर के मुकाबले रुपया 3.2 प्रतिशत नीचे आ चुका है।

इस साल एक जनवरी को रुपया 85.64 प्रति डॉलर पर था। यह सोमवार को पांच पैसे चढ़कर 87.45 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। सोमवार को कारोबार के दौरान रुपया 45 पैसे की भारी गिरावट के साथ 88 प्रति डॉलर के स्तर के करीब पहुंच गया था, लेकिन बाद में भारतीय रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप के कारण इसमें सुधार हुआ।

डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में कमी के कारण आम लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर जाने-माने अर्थशास्त्री और मद्रास स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के निदेशक प्रोफेसर एन आर भानुमूर्ति ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘रुपये के मूल्य में गिरावट के कारण आयातित मुद्रास्फीति (आयातित महंगे कच्चे माल) से चीजें महंगी होंगी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, अगर इससे निर्यात को गति मिलती है तब आर्थिक वृद्धि और रोजगार पर सकारात्मक असर पड़ सकता है।….यदि रुपये में गिरावट बाजार की ताकतों (मांग और आपूर्ति) के कारण होती है, तो उत्पादन वृद्धि और महंगाई दोनों बढ़ेंगी।’’

आनंद राठी शेयर्स एंड स्टॉक ब्रोकर्स के निदेशक (जिंस और मुद्रा) नवीन माथुर ने कहा, ‘‘रुपये की विनिमय दर में गिरावट का सबसे बड़ा असर महंगाई बढ़ने के रूप में होता है क्योंकि आयातित कच्चे माल और उत्पादन की लागत बढ़ जाती है जिसका बोझ अंतत: उपभोक्ताओं को उठाना होता है। इससे विदेश यात्रा और दूसरे देश में जाकर पढ़ाई और इलाज कराना महंगा हो जाता है।’’

भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, घरेलू मुद्रा के मूल्य में पांच प्रतिशत की कमी घरेलू मुद्रास्फीति को 0.30 से 0.35 प्रतिशत की सीमा तक प्रभावित करती है।

अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘यदि विनिमय दर पूरी तरह से बाजार की ताकतों के कारण बदल रही है, तो निर्यात और आयात में स्वतः समायोजन होगा। हालांकि, केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप के बारे में चर्चाएं हैं और हाल ही में सोने की खरीद के कारण चालू खाते के घाटे (कैड) में वृद्धि हुई है। कमजोर विनिमय दर से आयात महंगा होता है, इससे देश में महंगाई बढ़ सकती है। इसका विभिन्न क्षेत्रों पर नकारात्मक असर होता है।’’

उन्होंने कहा, हालांकि, इस बार दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमतों में नरमी के कारण भारत में महंगाई पर बहुत प्रभाव पड़ने की आशंका नहीं है। अगर प्रभाव होगा भी तो वह सीमित होगा।

उल्लेखनीय है कि वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा सोमवार को 0.98 प्रतिशत बढ़कर 75.39 डॉलर प्रति बैरल पर रहा।

माथुर ने कहा, ‘‘कमजोर रुपया ईंधन और इलेक्ट्रॉनिक जैसे आयातित सामान की लागत में वृद्धि का कारण बनता है, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और क्रय शक्ति कम हो सकती है। विदेशी मुद्रा में कर्ज लेने वाली कंपनियों को भुगतान की अधिक लागत चुकानी पड़ेगी। और आयातित कच्चे माल पर निर्भर इकाइयों को कम लाभ मार्जिन देखने को मिल सकता है। साथ ही, यह भारत में विदेशी निवेश प्रवाह को सीमित कर सकता है’’

उन्होंने कहा, ‘‘दूसरी तरफ, निर्यात से जुड़ी कंपनियों को स्थानीय मुद्रा के मूल्य में गिरावट का लाभ मिल सकता है। इसका कारण वे चीन के मुकाबले अधिक प्रतिस्पर्धी बन जाती हैं। सॉफ्टवेयर और विनिर्माण निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है क्योंकि वे चीन की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्धी होंगे।’’

डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर में गिरावट के कारण के बारे में पूछे जाने पर भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘इसके दो मुख्य कारण हैं। एक तो व्यापार घाटा के बढ़ना है। साथ ही अमेरिकी चुनाव के नतीजों के बाद भारतीय बाजारों से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की पूंजी निकासी है। दूसरा कारण, भारत और अमेरिका के बीच मुद्रास्फीति का अंतर बढ़ना है। अमेरिकी में महंगाई में गिरावट भारतीय मुद्रास्फीति की तुलना में ज्यादा है, इसलिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने वृद्धि दर को बढ़ावा देने के लिए प्रमुख ब्याज दर में कमी की है।’’

अप्रैल-दिसंबर के दौरान व्यापार घाटा यानी आयात व निर्यात के बीच का अंतर बढ़कर 210.77 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया, जो गत वित्त वर्ष 2023-24 की इसी अवधि में 189.74 अरब अमेरिकी डॉलर था

रुपये की विनिमय दर के मामले में दुनिया के अन्य उभरते बाजारों के मुकाबले भारत की स्थिति के बारे में पूछे जाने पर माथुर ने कहा, ‘‘अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट निर्यात प्रतिस्पर्धा के लिहाज से सकारात्मक है और इससे व्यापार घाटे में भी सुधार हो सकता है। 2024 में भारतीय रुपये में 2.9 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। इसके बावजूद यह एशिया के अपने समकक्ष देशों की मुद्रा की तुलना में बेहतर स्थिति में है। भारतीय मुद्रा 2024 के लिए क्षेत्र में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में से एक बनी रही और अन्य उभरते बाजारों की तुलना में अपेक्षाकृत स्थिर रही।’’

भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘विनिमय दर का स्तर अर्थव्यवस्थाओं की तुलनात्मक ताकत को समझने के लिए एकमात्र कारक नहीं है। यह देशों में क्रय शक्ति के संबंध में समानता सुनिश्चित करता है और प्रत्येक देश के उत्पादकता स्तर को भी दर्शाता है। उत्पादकता जितनी अधिक होगी, मुद्रा उतनी ही मजबूत होगी क्योंकि उन देशों में मुद्रास्फीति कम होगी।’’

भाषा रमण रमण अजय

अजय