(रिपोर्टः नरेश मिश्रा) रायपुरः छत्तीसगढ़ में लगातार तीन बार सत्ता पाने वाली भाजपा को अब बस्तर में आदिवासियों का दिल जीतने की चिंता सता रही है। क्योंकिं पिछली बार पार्टी का बस्तर से सूपड़ा साफ हो गया था। अब 2023 से पहले हार के कारण तलाशने, आदिवासियों की नाराजगी को दूर करने पार्टी नए प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बस्तर दौरे की शुरूआत कर चुके हैं। दोनों नेताओँ के सामने सबसे बड़ी चुनौती है सही चेहरों को आगे लाना। ये कहा जा है कि ना केवल संगठन में नए चेहरों को जिम्मेदारी मिलेगी बल्कि चुनावों में भी पार्टी नए चेहरों पर दांव लगा सकती है। इधर, कांग्रेस ने भाजपा की इस कवायद पर तंज कसते हुए कहा कि आदिवासी वोटर्स पिछले चुनावों में भाजपा को पूरी तरह से नकार चुके हैं। क्योंकि भाजपा सरकार ने बस्तर के लिए कुछ नहीं किया। इसके अलावा कोर्ट से 58 फीसद आरक्षण पर रोक लगाने का मुद्दा भी दोनों पार्टियों के बहस का नया मुद्दा बना हुआ है।
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जिसने बस्तर जीता उनसे छत्तीसगढ़ में सत्ता पाई। प्रदेश बनने का बाद से प्रदेश की सत्ता की राह बस्तर से ही निकलती दिखी है। ऐसे में सियासी दलों के लिए बस्तर के आदिवासी वोटर्ल का दिल जीतना हमेशा बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है, खासकर भारतीय जनता पार्टी के लिए। चुनावी नतीजे इस बात को साफ करते हैं। साल 2008 में जहां आदिवासियों ने भाजपा को बस्तर संभाग में कुल 12 में से 11 सीटें दी, तो वहीं 2013 में पार्टी यहां से महज 5 सीटें जीत पाई। जीत की हैट्रिक लगाने के बाद भी भाजपा आदिवासी मतदाताओं के मिजाज को भांप नहीं पाई, नतीजा 2018 के चुनाव में बस्तर से पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। सत्ता से बेदखल होने के बाद देश के सबसे बड़े दल ने आदिवासी वोटर्स की चिंता करते हुए हार के कारण तलाशने शुरू कर दिए हैं। इसके लिए पार्टी के पुराने चेहरों की अनदेखी और कार्यकर्ताओं की सुनवाई ना होना अहम माना गया। प्रदेश में ऐग्रेसिव नेतृत्व की मांग भी बस्तर के आदिवासी नेता ने ही उठाई थी। अब जबकि भाजपा में परिवर्तन का दौर चल रहा है। तो नए प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष एक बार फिर बस्तर के दौरे की शुरूआत कर चुनावी बिसात पर जीत का मंत्र तलाश रहे हैं।
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इधऱ, इस भाजपा की इस पूरी कवायद पर कांग्रेस ने तंज कसा है। कांग्रेस ने, भाजपा को उनका पिछला 15 साल का कार्यकाल याद दिलाते हुए पूछा है कि क्या बस्तर में भाजपा नेता उन प्रताड़ित आदिवासियों के घर भी जाने का साहस करेंगे जिन पर भाजपा शासनकाल में अत्याचार हुआ। वहीं मुख्यमंत्री ने कहा कि बस्तर को भाजपा पसंद नहीं है, क्योंकि भाजपा ने बस्तर के हित के लिए कोई काम ही नहीं किया है।
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ऐसा नहीं कि कांग्रेस का ध्यान बस्तर पर नहीं है सरकार के मुखिया भेंट मुलाकात कर बस्तर का दौरा पहले ही कर चुके हैं। संगठन भी बस्तर में पार्टी गतिवधियों को धार दे रही है। दूसरी तरफ हाल ही में आरक्षण पर आए हाईकोर्ट के फैसले के बाद, कांग्रेस सरकार ने साफ कर दिया है कि वो आदिवासी हितों की रक्षा के लिए उन्हें ST वर्ग के आरक्षण का पूरा लाभ दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जा रही है। कुल मिलाकर चुनाव नजदीक हैं। भाजपा नए जोश के साथ पुरानी गलतियों को सुधारने की शुरूआत कर चुकी है। सवाल ये कि क्या पार्टी का नया प्रदेश नेतृत्व बस्तर के आदिवासियों का दिल जीतने की चुनौती पूरी कर पाएंगे?