Vrindavan of Chhattisgarh - 'Champaran'
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नीरज कुमार शर्मा, राजिम। पवित्र सावन माह के छठवें सोमवार पर चम्पारण के चम्पेश्वर महादेव मंदिर में आज सुबह से ही शिव भक्तों का तांता लगा हुआ है। सुबह से ही स्वंयम्भू के दर्शन व पूजा करने भक्त मंदिर पहुंच रहे हैं। यह पंचकोशी धाम मंदिर का ही विशेष स्वयम्भू शिव मंदिर है। मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं, जहां देशभर से शिव भक्त पहुंच कर अपनी अर्जी लगा रहे है।
मंदिर के इतिहास के विषय में कहा जाता है की आज से 1250 वर्ष पहले चम्पारण सघन वन क्षेत्र था, जहाँ लोगों का आना जाना संभव नहीं था। तभी यहाँ भगवान त्रिमूर्ति शिव का अवतरण हुआ। लोगों का आवगमन ना होने से भगवान शिव ने एक गाय को अपना निमित्त बनाया। यह गाय रोज अपना दूध त्रिमूर्ति शिव को पिलाकर चली जाती थी। जब ग्वाला दूध लेता था तब दूध नहीं आता था। इस बात से ग्वाले को सन्देह हुआ और उसने एक दिन गाय का पीछा किया तो देखा कि गाय अपना दूध शिवलिंग को पिला रही है।
ग्वाले ने यह बात राजा को बताई और इस तरह यह बात पूरे विश्व में फैल गई और दुर-दूर से लोग भगवान श्री त्रिमुर्ति शिव के दर्शन के लिए आने लगे। इसे त्रिमूर्ति शिव पुकारे जाने का भी एक कारण यह है की यह शिवलिंग तीन रूपों का प्रतिनिधित्व करता है। ऊपरी हिस्सा गणपति का, मध्य भाग शिव का और निचला भाग माँ पार्वती का इस कारण इसे त्रिमुर्ति शिव के नाम से पुकारा जाता है।
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