Vande Bharat: धर्मांतरण पर घमासान..कब निकलेगा समाधान? भानुप्रतापपुर में पादरी-पास्टर की एंट्री बैन! देखें वीडियो
Conversion in CG: धर्मांतरण पर घमासान..कब निकलेगा समाधान? भानुप्रतापपुर में पादरी-पास्टर की एंट्री बैन! देखें वीडियो
Conversion in CG | Photo Credit: IBC24
- भानुप्रतापपुर के गांवों में पादरी-पास्टर के प्रवेश पर ग्रामीणों ने लगाई रोक
- धर्मांतरण के मामलों में बढ़ते विवाद के बीच आदिवासी संस्कृति बचाने की पहल
- राजनीतिक दलों में तीखी बयानबाज़ी, लेकिन समाधान अब भी अधूरा
रायपुर: Conversion in CG छत्तीसगढ़ में आदिवासी अंचल में नक्सलवाद के बाद अगर कोई सबसे बड़ा मुद्दा है तो धर्मांतरण समस्या ये है कि इसे लेकर न सक्षम ठोस कानून है और ना ही स्थानीय प्रशासन के पास कन्वर्जन का कोई पक्का डेटा। नतीजा आदिवासी क्षेत्रों में धर्मांतरण के बाद अक्सर विवाद और वर्ग संघर्ष जैसे हालात बनते हैं। इस पर सियासत भी खूब होती है, लेकिन समाधान नहीं निकलता। लेकिन अब आदिवासियोंं ने अपने गांवों में इसका हल अपने तरीके से ढूंढ लिया है।
Conversion in CG भानुप्रतापपुर के तकरीबन आधा दर्जन गांवों में अब ऐसे बड़े-बड़े बोर्ड लगाकर गांव में पादरी, पास्टर,ईसाई धर्म प्रचारक,यहां तक की ईसाई धर्म के अनुयाइयों के आने पर भी पाबंदी लगा दी गई हई है। इन बोर्ड पर साफ-साफ लिखा गया है कि गांव में पादरी-पास्टर का आना सख्त मना है। फैसला गांव वालों ने किया है। ग्रामीण मानते हैं कि आदिवासियों को प्रलोभन देकर उनका धर्मांतरण कराया जा रहा है। जिसके चलते आदिवासियों की संस्कृति, परंपरा का पतन होता जा रहा है। हालांकि किश्चयन समुदाय इस फैसले से इत्तेफाक नहीं रखता।
जाहिर है धर्मांतरण पर बवाल प्रदेश में नया नहीं है। दुर्ग में 2 नन्स की गिरफ्तारी मामले में पूरे देश में छत्तीसगढ़ की चर्चा छिड़ी, सियासत हुई। अब जबकि खुद ग्रामीण अपने गांव में पादरी-पास्टर का आना वर्जित कर रहे हैं, इसे लेकर बीजेपी-कांग्रेस अपने-अपने हिसाब से परिभाषित कर रहे हैं। कांग्रेस सरकार पर स्थिति ना संभाल पाने का दोष लगता ही तो बीजेपी इसे आदिवासी संस्कृति के खिलाफ बड़ा षड़यंत्र बताती है।
आरोप-प्रत्यारोप से इतर बीते कुछ समय से आदिवासी क्षेत्रों में कन्वर्टेड और आदिवासी समुदाय में संघर्ष के मामले बढ़ते दिखे हैं। बीते दिनों इसी इलाके में धर्मांतरित महिला की मौत के बाद, विवाद होने पर कब्र से शव बाहर निकालना पड़ा, कांकेर में भी क्रब खोदकर शव निकाला गया, फिर ईसाई समाज ने सड़क पर उतरकर प्रदर्शन किया। सवाल है कि क्या अब आदिवासी ग्राम में कन्वर्जन रोकने का यही तरीका शेष है ? क्या ये संघर्ष को रोक पाएगा?

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