Narasimha Jayanti: नरसिंह जयंती पर नौकाविहार पर निकले भगवान श्री जगन्नाथ, खारून नदी के तट पर की महाआरती, बड़ी संख्या में पहुंचे श्रध्दालु

Narasimha Jayanti: नरसिंह जयंती पर नौकाविहार पर निकले भगवान श्री जगन्नाथ, खारून नदी के तट पर की महाआरती, बड़ी संख्या में पहुंचे श्रध्दालु

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Modified Date: May 12, 2025 / 09:23 PM IST
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Published Date: May 12, 2025 9:23 pm IST

रायपुर। Narasimha Jayanti:  रायपुर श्री जगन्नाथ जी का चंदन यात्रा का आज महादेव घाट रायपुर में समापन हुआ। नरसिंह जयंती के अवसर पर पीयूष नगर श्री जगन्नाथ मंदिर से श्री जगन्नाथ जी को लें जाकर महादेव घाट में नौका विहार कराया गया। इस दौरान महाआरती की गई। भक्तों द्वारा छाँछ, व मिठाई प्रशाद का वितरण किया गया। इस अवसर पर राधा राशेश्वर शरण महाराज, विधायक पुरन्दर मिश्रा,वरिष्ठ पत्रकार अनिल पवार, ब्राम्हण समाज के अध्यक्ष योगेश तिवारी, बजरंग दल से राकेश यादव सहित सैकड़ों भक्त शामिल हुए।

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वहीं श्री जगन्नाथ मंदिर के पुजारी अरविन्द अवस्थी ने इस अवसर पर श्री जगन्नाथ जी के लीलाओ का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि, धर्म की स्थापना, भक्तों की रक्षा एवं अधर्म का विनाश करने के लिए श्री हरि प्रत्येक युग में विभिन्न कारणों से विभिन्न रूपों में प्रकट होते हैं। कलियुग में कोई अवतार नहीं होता, इसलिए द्वापर युग की लीला को आधार बनाकर प्रभु श्री जगन्नाथ जी पुरुषोत्तम क्षेत्र (पुरी) में दारू विग्रह के रूप में प्रकट हुए। श्री जगन्नाथ, श्रीकृष्ण के ही परिवर्तित रूप हैं।

विविध ब्रह्म रूपों का वर्णन:
वारी ब्रह्म — माँ गंगा
शब्द ब्रह्म — श्रीमद्भागवत महापुराण
नाद ब्रह्म — महामंत्र कीर्तन
शिला ब्रह्म — शालिग्राम
अन्न ब्रह्म — महाप्रसाद
दारू ब्रह्म — स्वयं श्री जगन्नाथ

उड़ीसा में श्री जगन्नाथ जी को कलियुग के प्रत्यक्ष देवता माना जाता है, इसलिए उन्हें “कलियुगे कालिया” कहा जाता है।
पुरी धाम में प्रभु को तीन रूपों में पूजा जाता है:

महाकाली — क्योंकि वे पूर्ण ब्रह्म हैं
भैरव — माँ विमला, जो शक्तिपीठ हैं
नारायण — श्रीकृष्ण के रूप में

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Narasimha Jayanti: कथाओं में वर्णन है कि, श्रीकृष्ण ही पूर्ण ब्रह्म परमात्मा हैं। माँ पार्वती जी ने भगवान शिव को वचन दिया था कि द्वापर युग में मैं पुरुष रूप में प्रकट होउंगी, और आप नारी रूप में आना। इसी वचन के अनुसार प्रभु श्रीकृष्ण रूप में प्रकट हुए और अपने ही अर्ध स्वरूप को बाबा नंद जी के यहाँ कन्या रूप में प्रकट किया, जो बाद में विंध्याचल में निवास करती हैं। इसलिए विंध्याचल को पूर्ण शक्तिपीठ और पुरी को पूर्ण ब्रह्म स्थान माना जाता है जहाँ भगवती और भगवान दोनों का नित्य वास होता है। प्रभु तो केवल प्रेम के भूखे हैं। उन्हें किसी भौतिक वस्तु से नहीं, शुद्ध प्रेम से ही प्रसन्न किया जा सकता है।