रायपुर। Will paddy become the election agenda again? छत्तीसगढ़ में सत्ता और सियासत दोनों धान से ही जुड़े हैं। पिछले चुनाव में धान को लेकर कांग्रेस का ऐलान मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ और 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता पर काबिज हो पाई। अब फिर से चुनाव आने वाले हैं और कांग्रेस सरकार ने धान खरीदी का कोटा बढ़ाकर बड़ा दांव खेला है। बीजेपी इसे तस्करी का जरिया बता रही है, जिसपर कांग्रेस नेताओं ने करारा जवाब दिया है।
Will paddy become the election agenda again? कांग्रेस ने पिछले चुनाव में धान बोनस का दांव खेलकर प्रचंड जीत हासिल की और अब एक बार फिर चुनाव आने वाले हैं.. इस बार कांग्रेस सरकार ने 20 क्विंटल प्रति एकड़ धान खरीदने की बड़ी घोषणा की है। इस ऐलान के बाद से बीजेपी लगातार हमलावर है। बीजेपी आंकड़ों का हवाला देकर धान खरीदी का कोटा बढ़ाने को तस्करी का हथकंडा बता रही है।
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इन आरोपों पर कांग्रेस ने बीजेपी को दिमागी इलाज की नसीहत दी है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि कभी बीजेपी ही कोटा बढ़ाने की मांग करती थी और अब किस मुंह से इसका विरोध कह रहे हैं।
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दरअसल, छत्तीसगढ़ में धान और किसान के बिना कोई भी सियासी चर्चा अधूरी है। किसान यहां अन्नदाता भी हैं और सत्ता के भाग्य विधाता भी। किसानों की किस्मत धान पर टिकी है और कुर्सी किसकी होगी, इसका फैसला किसानों पर निर्भर है।
छत्तीसगढ़ की करीब 70ः आबादी किसान है और यहां 37.46 लाख कृषक परिवार हैं। इस बार 24.98 लाख किसानों ने रजिस्ट्रेशन करवाया और 23.39 लाख किसानों ने डैच् पर धान बेचा। जाहिर है इतनी बड़ी आबादी को जिस दल ने भी साध लिया, उसकी सरकार बननी तय है।