Publish Date - January 20, 2025 / 12:33 AM IST,
Updated On - January 20, 2025 / 11:52 AM IST
Female Naga Sanyasis
महाकुंभ नगर:Female Naga Sanyasis सनातन धर्म की रक्षा के लिए नारी शक्ति भी किसी तरह से पीछे नहीं है। रविवार को 100 से अधिक महिलाओं को जूना अखाड़ा में नागा दीक्षा दी गई जिसमें तीन विदेशी महिलाएं भी शामिल हैं। जूना अखाड़ा की महिला संत दिव्या गिरि ने बताया कि रविवार को उनके अखाड़े में 100 से अधिक महिलाओं को नागा संन्यासिन के तौर पर दीक्षा दी गई। इस दीक्षा के लिए पंजीकरण जारी है और प्रथम चरण में 102 महिलाओं को नागा दीक्षा दी गई।
Female Naga Sanyasis उन्होंने बताया कि 12 वर्षों की सेवा और उनके गुरु के प्रति के समर्पण को देखने के बाद इन महिलाओं को अवधूतनी बनाया गया। अवधूतनी का समूह गंगा के तट पर पहुंचा जहां उनका मुंडन कराया गया। गंगा स्नान के बाद उन्हें कमंडल, गंगा जल और दंड दिया गया। अंतिम दीक्षा आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि द्वारा दी जाएगी। महाकुंभ में विदेशी महिलाओं ने भी नागा संन्यासी दीक्षा में हिस्सा लिया और अब वे जूना अखाड़ा की सदस्य हैं। तीन विदेशी महिलाओं को नागा संन्यासिन के तौर पर दीक्षा दी गई। इनमें इटली से बांकिया मरियम को शिवानी भारती, फ्रांस की वेक्वेन मैरी को कामाख्या गिरि और नेपाल की मोक्षिता रानी को मोक्षिता गिरी नाम दिया गया।
बता दें कि महिला नागा संन्यासी तपस्या से गुजरती हैं, जैसे कोई पुरुष गुजरता है। महिलाओं को संन्यास धारण करने के लिए अपने श्रृंगार का त्याग करना होता है। वैसे तो हिंदू रीति रिवाज और सनातन धर्म में महिलाओं का पिंडदान करना सही नहीं है। मगर साध्वी जीवन जीने वाली महिलाओं के साथ यह नियम लागू नहीं होते हैं। हम लोग इसलिए अपना पिंडदान करते हैं, ताकि अगर हमारे मरने के बाद कोई अंतिम संस्कार के लिए नहीं हुआ तो क्या करेंगे। ऐसे में खुद का पिंडदान कर दिया जाता है।
महिला नागा संन्यासिन को दीक्षा देने की परंपरा कब से शुरू हुई?
महिला नागा संन्यासिनों को दीक्षा देने की परंपरा हाल ही में लोकप्रिय हो रही है। यह परंपरा जूना अखाड़ा द्वारा शुरू की गई है, जहां महिलाओं को भी पुरुषों की तरह कठोर तपस्या और साधना का हिस्सा बनने का अवसर दिया जा रहा है।
नागा दीक्षा में महिलाओं को कौन सी प्रक्रिया से गुजरना होता है?
महिला नागा संन्यासिन को दीक्षा लेने के लिए उन्हें अपने श्रृंगार का त्याग करना पड़ता है और कठोर तपस्या करनी होती है। दीक्षा की प्रक्रिया में गंगा स्नान, मुंडन और विशेष पूजा-अर्चना शामिल होती है। इसके बाद उन्हें कमंडल, गंगा जल और दंड दिया जाता है।
क्या महिला नागा संन्यासियों के लिए कोई विशेष नियम होते हैं?
महिला नागा संन्यासिनों के लिए पुरुषों जैसा कठोर नियम होते हैं, जिसमें अपने श्रृंगार का त्याग करना, साध्वी जीवन अपनाना और तपस्या करना शामिल है। हालांकि, महिलाओं को पिंडदान जैसी पारंपरिक प्रक्रिया से छूट मिलती है, क्योंकि वे साध्वी जीवन जीने वाली होती हैं।
विदेशी महिलाएं नागा संन्यासिन के रूप में दीक्षा क्यों लेती हैं?
विदेशी महिलाएं भी सनातन धर्म और हिंदू संस्कृति के प्रति आकर्षित होकर नागा संन्यासिन के रूप में दीक्षा लेती हैं। इन महिलाओं को इस दीक्षा के माध्यम से जूना अखाड़ा की सदस्यता प्राप्त होती है और वे भी भारतीय साध्वी जीवन की राह पर चलने का संकल्प लेती हैं।
नागा दीक्षा लेने के बाद महिलाओं को कौन-कौन सी जिम्मेदारियां दी जाती हैं?
नागा दीक्षा लेने के बाद महिलाओं को साध्वी जीवन जीने की जिम्मेदारी दी जाती है। उन्हें तपस्या, साधना और समाज में सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करना होता है। वे अपने गुरु के प्रति समर्पण और आस्था से इस मार्ग पर चलती हैं।