बंबई उच्च न्यायालय का फैसला आपत्तिजनक, अस्वीकार्य और आक्रोशित करने वाला : कार्यकर्ता

बंबई उच्च न्यायालय का फैसला आपत्तिजनक, अस्वीकार्य और आक्रोशित करने वाला : कार्यकर्ता

  •  
  • Publish Date - January 25, 2021 / 12:33 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:54 PM IST

नयी दिल्ली, 25 जनवरी (भाषा) कार्यकर्ताओं और बाल अधिकार निकायों ने बंबई उच्च न्यायालय के उस हालिया फैसले की आलोचना की है जिसमें कहा गया कि ‘त्वचा से त्वचा’ का संपर्क नहीं हुआ है तो यह यौन हमला नहीं है।

कार्यकर्ताओं ने फैसले को ‘स्पष्ट रूप से अस्वीकार्य, आक्रोशित करने वाला और आपत्तिजनक करार देते हुए इसे चुनौती देने का आह्वान किया है।

बंबई उच्च न्यायालय ने 19 जनवरी को दिए फैसले में कहा था कि त्वचा से त्वचा का संपर्क हुए बिना नाबालिग पीड़िता का स्तन स्पर्श करना, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (पोक्सो) के तहत यौन हमला नहीं कहा जा सकता।

नागपुर खंडपीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने अपने फैसले में कहा कि यौन हमले की घटना मानने के लिए यौन इच्छा के साथ त्वचा से त्वचा का संपर्क होना चाहिए।

इस फैसले से बाल अधिकार समूहों एवं कार्यकर्ताओं में नाराजगी है जिन्होंने इसे ‘‘ निश्चित रूप से अस्वीकार्य, आक्रोशित करने वाला एवं आपत्तिजनक करार दिया है’’ और फैसले को चुनौती देने का आह्वान किया है।

बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकारी निदेशक धनंजय टिंगल ने कहा कि उनकी कानूनी टीम मामले को देख रही है और मामले से जुड़े सभी संबंधित आंकड़े जुटा रही है।

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ हम इनपुट के अधार पर उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकते हैं।’’

बाल अधिकारों के शीर्ष निकाय राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने महाराष्ट्र सरकार को इस हालिया फैसले के खिलाफ तत्काल अपील दाखिल करने को कहा है।

आल इंडिया प्रोग्रेसिव वुमैंस एसोसिएशन की सचिव एवं कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने इसे ‘आक्रोशित करने वाला फैसला’ करार देते हुए इसे कानून की भावना के खिलाफ बताया।

कृष्णन ने कहा, ‘‘ पोक्सो कानून यौन हमले को बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है और उसमें यौन स्पर्श का प्रावधान है। यह धारणा कि आप कपड़ों के साथ या बिना स्पर्श के आधार पर कानून को दरकिनार कर देंगे, इसका कोई मतलब नहीं है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ यह पूर्णत: बेतुका है और आम समझ की कसौटी पर भी नाकाम साबित होता है।’’

पीपुल्स अगेंस्ट रेप इन इंडिया (परी) की अध्यक्ष योगिता भायाना ने कहा कि न्यायाधीश से यह सुनना निराशाजनक है और ऐसे बयान ‘ अपराधियों को प्रोत्साहित’ करते हैं।

भायाना ने कहा कि निर्भया मामले के बाद वे तो गाली तक को भी यौन हमले में शामिल कराने की कोशिश कर रहे हैं।

सेव चिल्ड्रेन के उप निदेशक प्रभात कुमार ने कहा कि पोक्सो कानून में कहीं भी त्वचा से त्वचा के संपर्क की बात नहीं की गई है।

महिला कार्यकर्ता शमिना शफीक ने कहा कि महिला न्यायाधीश द्वारा यह फैसला देना दुर्भाग्यपूर्ण है।

सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने कहा, ‘‘ यह स्तब्ध करने वाला है और न्यायाधीश महिला है। मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि कैसे महिला न्यायाधीश इस तरह का फैसला दे सकती हैं।

भाषा धीरज नरेश

नरेश