UP News| Image Credit : Mayawati X Handle
BSP supremo Mayawati disagrees on classification of reservation: लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आरक्षण के वर्गीकरण के फैसले पर उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम और बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने अपनी असहमति जाहिर की है। इस मामले पर उन्होंने प्रेस नोट जारी किया हैं। जानें क्या हैं इस प्रकरण पर मायावती का रुख।
मायावती की तरफ से कहा गया है कि, सुप्रीम कोर्ट के 7- न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ द्वारा अभी हाल ही में पहली अगस्त 2024 को देश में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के सन्दर्भ में जो एक अति महत्वपूर्ण निर्णय दिया गया है तो उसके सम्बंध में अपनी पार्टी की प्रतिक्रिया जाहिर करने के लिए बुलाई गई है, जिसमें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगों को पुनः उप-वर्गीकृत (Sub-classification) किए जाने को मान्यता प्रदान की गई है, जिसको लेकर और भी बहुत सी बातें कहीं गई है उनसे हमारी पार्टी कतई भी सहमत नहीं है। और इस सम्बन्ध में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में पारित इस आदेश के अनुसार अब राज्य सरकारें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति सूची के भीतर आरक्षण के लिए उप-वर्गीकरण अर्थात् नई सूची बना सकेंगी, जिससे फिर अनेकों समस्यायें उत्पन्न होंगी।
BSP supremo Mayawati disagrees on classification of reservation: अब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहली अगस्त 2024 के इस निर्णय से 20 वर्ष पूर्व दिया गया निर्णय जो सन् 2004 में पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ द्वारा ई.वी. चिन्नैया बनाम आँध्र प्रदेश राज्य में दिया गया था, को पलट दिया है जिसमें अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के भीतर किए जाने वाले वर्गीकरण को मान्यता देने से इनकार कर दिया गया था और यह भी कहा गया था कि अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के भीतर उप-वर्गीकरण नही किया जा सकता है क्योंकि वे एक ही समरूप अर्थात् समान वर्ग में आते हैं।
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2004 के अपने निर्णय में यह भी कहा था कि चूंकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लोगों ने जो अत्याचार सहे हैं वह एक वर्ग और एक समूह के रूप में सहे हैं तथा यह एक बराबर का वर्ग है जिसके भीतर किसी भी प्रकार का वर्गीकरण करना उचित नहीं होगा। मा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2004 के निर्णय में यह भी कहा था कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के भीतर किसी भी प्रकार का उप वर्गीकरण भारतीय संविधान की मूल भावना के विपरीत होगा। माननीय कोर्ट ने अपने वर्ष 2004 के इस निर्णय द्वारा समानता के अधिकार का उल्लंघन करने के कारण आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा पारित आंध्र प्रदेश अनुसूचित जाति ( आरक्षण का युक्तिकरण) अधिनियम 2000 को भी रद्द कर दिया था। अपने 2004 के निर्णय में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना था कि यह वर्गीकरण इन जातियों के भीतर अलग-अलग व्यवहार करके समानता के अधिकार का उल्लंघन करेगा और अब माननीय सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की पीठ ने पहली अगस्त 2024 के निर्णय से सन् 2004 के निर्णय को पलट दिया है, जबकि इस निर्णय से अनेकों मतभेद उत्पन्न होंगे।
BSP supremo Mayawati disagrees on classification of reservation: माननीय सुप्रीम कोर्ट के पहली अगस्त 2024 के इस निर्णय के बाद केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच भी मतभेद की स्थिति उत्पन्न होगी, क्योंकि अभी तक केवल संसद के पास किसी भी जाति को या जनजाति को अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति में सम्मिलित करने या बाहर करने की पावर (शक्ति) है जिसे माननीय राष्ट्रपति द्वारा अपने आदेशों द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। और जिसे बदलने का किसी भी राज्य सरकार को अधिकार नहीं है। नीचे पढ़े पूरी विज्ञप्ति..
04-08-2024-BSP PRESS NOTE-SCs Sub-classification pic.twitter.com/v5nSCbBDYZ
— Mayawati (@Mayawati) August 4, 2024