केंद्र ‘लेटरल एंट्री’ की आवश्यकता और प्रभाव पर कर रहा हितधारकों से परामर्श: डीओपीटी सचिव

केंद्र ‘लेटरल एंट्री’ की आवश्यकता और प्रभाव पर कर रहा हितधारकों से परामर्श: डीओपीटी सचिव

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  • Publish Date - December 30, 2025 / 07:06 PM IST,
    Updated On - December 30, 2025 / 07:06 PM IST

नयी दिल्ली, 30 दिसंबर (भाषा) केंद्र सरकार ‘लेटरल एंट्री’ भर्ती की आवश्यकता और प्रभाव पर हितधारकों के साथ परामर्श कर रही है। यह बात मंगलवार को एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने कही।

केंद्र सरकार में 2018 से विशिष्ट कार्यों के लिए ‘लेटरल एंट्री’ भर्ती की जा रही है, जिसमें संबंधित क्षेत्र में विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता रखने वाले निजी क्षेत्र के लोग भी शामिल हैं।

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की सचिव रचना शाह ने कहा कि तीन चरणों में ‘लेटरल एंट्री’ के तहत संयुक्त सचिव और उपसचिव/निदेशक के स्तर पर लगभग 60 अधिकारियों को भर्ती किया गया था और इनमें से लगभग 38 से 40 अधिकारी विभिन्न मंत्रालयों तथा विभागों में कार्यरत हैं और योगदान दे रहे हैं।

शाह ने कहा, ‘‘हम संबंधित मंत्रालयों और विभागों के साथ परामर्श एवं चर्चा कर रहे हैं।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार ‘लेटरल एंट्री’ भर्ती पर नए नियम और प्रक्रियाएं बनाने पर विचार कर रही है, उन्होंने कहा कि यदि मंत्रालयों और विभागों के साथ परामर्श के दौरान कुछ सामने आता है, और यदि योजना में कुछ संशोधन करने एवं उसकी समीक्षा करने की कोई आवश्यकता हो, तो निश्चित रूप से ऐसा किया जा सकता है।

कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय की वर्ष के अंत की उपलब्धियों पर आयोजित प्रेसवार्ता के दौरान शाह ने कहा, ‘‘इसलिए, हम वर्तमान में मंत्रालयों और विभागों के साथ इस पहल के प्रभाव और इसकी आवश्यकता को जानने के लिए चर्चा कर रहे हैं।’’

केंद्र सरकार के एक पत्र के बाद संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने पिछले साल अगस्त में सरकारी विभागों में महत्वपूर्ण पदों को ‘लेटरल एंट्री’ के माध्यम से भरने के लिए जारी किए गए विज्ञापन को रद्द कर दिया था, क्योंकि इन पदों के लिए आरक्षण प्रावधान के अभाव को लेकर राजनीतिक विवाद गहरा गया था।

आयोग ने 17 अगस्त, 2024 को ‘लेटरल एंट्री’ के माध्यम से 45 पदों – 10 संयुक्त सचिव और 35 निदेशक या उपसचिव पदों पर भर्ती के लिए अधिसूचना जारी की थी।

हालांकि, इस फैसले की विपक्षी दलों ने आलोचना की थी और दावा किया था कि इससे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के आरक्षण अधिकारों को कमजोर किया जा रहा है।

भाषा नेत्रपाल नरेश

नरेश