पटियाला (पंजाब), 23 दिसंबर (भाषा) प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने मंगलवार को युवा वकीलों से कहा कि वे खुद को केवल ‘‘मामलों के निर्माता’’ के रूप में नहीं, बल्कि ‘‘राष्ट्र निर्माता’’ के रूप में देखें और खुद से यह बड़ा, अधिक स्थायी प्रश्न पूछें कि भारत जैसे देश में एक वकील की भूमिका क्या है।
यहां राजीव गांधी राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (आरजीएनयूएल) के सातवें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि प्रत्येक पीढ़ी देश को अपूर्ण रूप में विरासत में पाती है और इसके भविष्य को आकार देने की जिम्मेदारी वहन करती है।
उन्होंने ‘‘मामला निर्माता’’ और ‘‘राष्ट्र निर्माता’’ के बीच अंतर स्पष्ट किया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने छात्रों से कहा, ‘‘आप सभी को दुनिया में अपना स्थान ग्रहण करते हुए देखकर मुझे एक सरल सत्य याद आता है – प्रत्येक पीढ़ी को गणतंत्र अपूर्ण अवस्था में प्राप्त होता है। हमारा संविधान पत्थर पर उकेरा गया स्मारक नहीं है, बल्कि एक विलक्षण खाका है। न्यायालय इसकी व्याख्या करते हैं, संस्थाएँ इसे संरचना प्रदान करती हैं, लेकिन आप, मेरे प्रिय युवाओ, इसे जीवन प्रदान करेंगे। आपको यह तय करना होगा कि भारत आगे क्या बनेगा।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जब भी उन्हें इतने युवा और ऊर्जावान श्रोताओं को संबोधित करने का सौभाग्य मिलता है, ‘‘मुझे यह स्वीकार करना होगा कि मैं मानता हूं कि आप में से अधिकतर लोग वकील बनेंगे।’’
न्यायमूर्ति कांत ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जब कई छात्रों ने कानून का अध्ययन करने का विकल्प चुना, तो उन्होंने शायद खुद को ऐतिहासिक मामलों में बहस करते हुए, जटिल अनुबंधों का मसौदा तैयार करते हुए या शायद, एक दिन संवैधानिक पीठों को संबोधित करते हुए कल्पना की होगी, जो कि सराहनीय महत्वाकांक्षाएं हैं और उनमें कुछ भी गलत नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन मैं आपसे आग्रह करूंगा कि आप रुकें और एक व्यापक, अधिक स्थायी प्रश्न पर विचार करें – भारत जैसे राष्ट्र में, उसके इतिहास के इस मोड़ पर, एक वकील की क्या भूमिका है? मैं इस पर जोर देता हूं, क्योंकि मैं भली-भांति जानता हूं कि हम अक्सर कानूनी पेशे को एक संकीर्ण प्रक्रिया तक सीमित कर देते हैं – मुकदमे जीतना, घंटों का हिसाब रखना, प्रक्रिया में महारत हासिल करना।’’
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि हालांकि इससे निश्चित रूप से सक्षम पेशेवर तैयार होते हैं, लेकिन इससे राष्ट्र निर्माता तैयार नहीं होते।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि एक मामला निर्माता वर्तमान विवाद पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि एक राष्ट्र निर्माता आज के विवाद के कल के समाज पर पड़ने वाले परिणामों से चिंतित होता है।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पंकज मिथल और राजेश बिंदल को ‘डॉक्टर ऑफ लॉज़’ (मानद उपाधि) की उपाधि प्रदान की।
इस अवसर पर पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश शील नागू भी उपस्थित थे।
विश्वविद्यालय के कुलपति जय शंकर सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया।
भाषा नेत्रपाल माधव
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