शिमला, 24 जुलाई (भाषा) हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने बृहस्पतिवार को कहा कि जब प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की बात आती है तो यह ध्यान रखना जरूरी है कि पहाड़ी राज्यों के सामने भिन्न एवं बड़ी चुनौतियां होती हैं तथा इन आपदाओं के मूल कारणों का पता लगाने से उन्हें कम करने और उसके अनुसार खुद को तैयार करने में मदद मिलेगी।
हिमाचल प्रदेश में बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के कारणों का अध्ययन करने के लिए आए केंद्रीय प्रतिनिधिमंडल के साथ बातचीत करते हुए सक्सेना ने कहा कि बादल फटने, अचानक बाढ़ आने और भूस्खलन होने जैसी आपदाओं की बारंबारता, पैमाने, तीव्रता और प्रभाव के कारण राज्य सरकार के सामने नई चुनौतियां उभरी हैं।
मुख्य सचिव ने कहा कि ऐसी आपदाओं का पीड़ितों के जीवन, सामाजिक संरचना और राज्य के समग्र विकास पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है।
राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में 20 जून को मानसून के आगमन से 23 जुलाई तक, वर्षाजनित घटनाओं में 77 लोगों की मौत हो चुकी है और 34 लापता हैं। इस मौसम में राज्य में 42 बार अचानक बाढ़ आने, 24 बार बादल फटने और 26 बार भूस्खलन की घटनाएं हुई हैं, जिससे 1,382 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सलाहकार कर्नल के पी सिंह के नेतृत्व में विभिन्न क्षेत्रों की केंद्रीय टीम को हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती बारंबारता की जांच करने, उनके मूल कारणों का पता लगाने तथा केंद्र और राज्य सरकारों को वैज्ञानिक साक्ष्य एवं विश्लेषण के आधार पर उपचारात्मक उपाय सुझाने का काम सौंपा गया है।
टीम में सीएसआईआर-सीबीआरआई (रुड़की) के मुख्य वैज्ञानिक डॉ एस के नेगी, मणिपुर विश्वविद्यालय के भूविज्ञानी और सेवानिवृत्त प्रोफेसर अरुण कुमार, आईआईटीएम पुणे की शोध वैज्ञानिक डॉ सुस्मिता जोसेफ और आईआईटी इंदौर में सिविल इंजीनियरिंग की प्रोफेसर डॉ नीलिमा सत्यम भी शामिल हैं।
मामले की गंभीरता को देखते हुए, प्रतिनिधिमंडल को शीघ्र ही हिमाचल प्रदेश का दौरा करने के लिए कहा गया। अंतिम आकलन करने के बाद, यह दल एक सप्ताह के भीतर गृह मंत्रालय के आपदा प्रबंधन प्रभाग को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
भाषा राजकुमार रंजन
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