कांग्रेस वंदे मातरम् के बंटवारे पर झुकी, इसलिए भारत के बंटवारे के लिए भी झुकना पड़ा: प्रधानमंत्री

कांग्रेस वंदे मातरम् के बंटवारे पर झुकी, इसलिए भारत के बंटवारे के लिए भी झुकना पड़ा: प्रधानमंत्री

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  • Publish Date - December 8, 2025 / 02:22 PM IST,
    Updated On - December 8, 2025 / 02:22 PM IST

(तस्वीर सहित)

नयी दिल्ली, आठ दिसंबर (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को लोकसभा में दावा किया कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए मुस्लिम लीग के दबाव में वंदे मातरम् के टुकड़े कर दिए गए और एक दिन पार्टी को भारत के बंटवारे के लिए भी झुकना पड़ा।

मोदी ने सदन में ‘‘राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर चर्चा’’ की शुरुआत करते हुए 1975 में देश में लगाए गए आपातकाल का हवाला दिया और कहा कि जब राष्ट्रीय गीत के 100 वर्ष पूरे हुए, तब देश आपातकाल की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और संविधान का गला घोंट दिया गया था।

उन्होंने कांग्रेस को आड़े हाथ लेते हुए कहा, ‘‘जब आजादी को कुचलने की कोशिश हुई, संविधान की पीठ पर छुरा घोंप दिया गया और देश पर आपातकाल थोप दिया गया, तब इसी वंदे मातरम ने देश को खड़ा किया।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा 1875 में लिखित वंदे मातरम् जब देश की ऊर्जा और प्रेरणा का मंत्र बन रहा था और स्वतंत्रता संग्राम का नारा बन गया था, तब मुस्लिम लीग की विरोध की राजनीति और मोहम्मद अली जिन्ना के दबाव में कांग्रेस झुक गई।

उन्होंने कहा, ‘‘तब कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष नेहरू को अपना सिंहासन डोलता दिखा। नेहरू जी मुस्लिम लीग के आधारहीन बयानों पर करारा जवाब देते, मुस्लिम लीग के बयानों की निंदा करते, वंदे मातरम के प्रति खुद की और कांग्रेस पार्टी की निष्ठा को प्रकट करते, उसके बजाय उन्होंने वंदे मातरम् की ही पड़ताल शुरू कर दी।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि जिन्ना के विरोध के पांच दिन बाद ही तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पत्र लिखा और उसमें जिन्ना की भावना से सहमति जताते हुए कहा ‘‘वंदे मातरम की आनंद मठ की पृष्ठभूमि मुसलमानों को इरिटेट (क्षुब्ध) कर सकती है।’’

इसके बाद कांग्रेस ने वंदे मातरम् के उपयोग की समीक्षा की घोषणा की जिससे पूरा देश हैरान था।

मोदी ने कहा, ‘‘देशभक्तों ने इस प्रस्ताव के विरोध में देश के कोने कोने में प्रभात फेरियां निकालीं, वंदे मातरम् गीत गाया। लेकिन देश का दुर्भाग्य कि 26 अक्टूबर (1937) को कांग्रेस ने वंदे मातरम् पर समझौता कर लिया। वंदे मातरम् के टुकड़े करने के फैसले में नकाब यह पहना गया कि यह तो सामाजिक सद्भाव का काम है। लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के सामने घुटने टेक दिए और मुस्लिम लीग के दबाव में यह किया। यह कांग्रेस का तुष्टीकरण की राजनीति को साधने का एक तरीका था।’’

प्रधानमंत्री के मुताबिक, नेहरू ने पत्र में लिखा, ‘‘मैंने वंदे मातरम गीत की पृष्ठभूमि पढ़ी है। मुझे लगता है कि जो पृष्ठभूमि है, इससे मुस्लिम भड़केंगे।’’

मोदी ने कहा, ‘‘कांग्रेस वंदे मातरम् के बंटवारे पर झुकी, इसलिए उसे एक दिन भारत के बंटवारे के लिए झुकना पड़ा।’’

मोदी ने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से कांग्रेस की नीतियां आज वैसी की वैसी ही हैं और आज आईएनसी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) चलते-चलते एमएमसी हो गया है।’’

प्रधानमंत्री ने गत 14 नवंबर को बिहार विधानसभा चुनाव में राजग की जीत के बाद अपने भाषण में कांग्रेस के लिए एमएमसी (मुस्लिम-लीगी माओवादी कांग्रेस) शब्द का इस्तेमाल किया था।

मोदी ने लोकसभा में कहा, ‘‘वंदे मातरम्, सिर्फ राजनीतिक लड़ाई का मंत्र नहीं था। अंग्रेज जाएं और हम अपनी राह पर खड़े हो जाएं, वंदे मातरम् सिर्फ यहां तक सीमित नहीं था। यह आजादी की लड़ाई थी, इस मातृभूमि को मुक्त कराने की जंग थी। मां भारती को उन बेड़ियों से मुक्त कराने की एक पवित्र जंग थी।’’

उनका कहना था, ‘‘अंग्रेज समझ चुके थे कि 1857 के बाद भारत में लंबे समय तक टिक पाना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है। वे सपने लेकर तो आए थे, लेकिन उन्हें यह साफ दिखने लगा कि जब तक भारत को बांटा नहीं जाएगा, लोगों को आपस में लड़ाया नहीं जाएगा, तब तक यहां राज करना कठिन है। तब अंग्रेज़ों ने ‘बांटो और राज करो’ का रास्ता चुना, और उन्होंने बंगाल को इसकी प्रयोगशाला बनाया।’’

मोदी ने कहा, ‘‘जिस मंत्र ने, जिस जयघोष ने देश की आजादी के आंदोलन को ऊर्जा और प्रेरणा दी थी, त्याग और तपस्या का मार्ग दिखाया था, उस वंदे मातरम् का पुण्य स्मरण करना इस सदन में हम सबका बहुत बड़ा सौभाग्य है। हमारे लिए यह गर्व की बात है कि वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं और हम सभी इस ऐतिहासिक अवसर के साक्षी बन रहे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वंदे मातरम् की 150 वर्ष की यात्रा अनेक पड़ावों से गुजरी है, लेकिन जब वंदे मातरम् के 50 वर्ष हुए थे, तब देश गुलामी में जीने के लिए मजबूर था। जब वंदे मातरम् के 100 वर्ष हुए, तब देश आपातकाल की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और जब वंदे मातरम् का अत्यंत उत्तम पर्व होना चाहिए था, तब भारत के संविधान का गला घोंट दिया गया था।’’

मोदी ने सदन में उपस्थित सदस्यों से कहा, ‘‘हम लोगों पर तो कर्ज है वंदे मातरम का। उसी ने यहां (संसद में) पहुंचाने का रास्ता बनाया। अब हम आत्मनिर्भर भारत का सपना लेकर चल रहे हैं और वंदे मातरम् हमारी प्रेरणा है। स्वदेशी आंदोलन की भावना आज भी मौजूद है और वंदे मातरम हमें जोड़ता है।’’

उन्होंने कहा कि आजादी से पहले महापुरुषों का सपना स्वतंत्र भारत का था और आज की पीढ़ी का सपना समृद्ध भारत का है।

मोदी ने कहा कि वंदे मातरम् गीत ऐसे समय लिखा गया था, जब 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज सल्तनत बौखलाई हुई थी।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारा सपना है कि 2047 में देश विकसित भारत बनकर रहे। अगर आजादी के 50 साल पहले कोई देश की आजादी का सपना देख सकता था तो 25 साल पहले हम भी समृद्ध, विकसित भारत का सपना देख सकते हैं।’’

मोदी ने कहा, ‘‘यहां कोई पक्ष, विपक्ष नहीं है। यहां बैठे हम सब लोगों के लिए सोचने का विषय है कि आजादी के आंदोलन के परिणामस्वरूप हम यहां बैठे हैं। हम जन प्रतिनिधियों के लिए वंदे मातरम के ऋण को स्वीकार करने का अवसर है।’’

प्रधानमंत्री ने वंदे मातरम् की रचना और इसके राष्ट्र गीत बनने में पश्चिम बंगाल की भूमिका का जिक्र करते हुए कहा कि अंग्रेजों ने सबसे पहले बंगाल के टुकड़े करने की दिशा में काम किया और उनका मानना था कि एक बार बंगाल टूट गया तो देश भी टूट जाएगा।

उन्होंने कहा, ‘‘1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया। जब उन्होंने यह पाप किया तब वंदे मातरम् चट्टान की तरह खड़ा रहा। बंगाल की एकता के लिए वंदे मातरम गली-गली का नाद बन गया था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम देशवासियों को गर्व होना चाहिए कि दुनिया के इतिहास में कहीं भी ऐसा कोई काव्य नहीं हो सकता, ऐसा कोई भाव-गीत नहीं हो सकता जो सदियों तक एक लक्ष्य के लिए कोटि-कोटि लोगों को प्रेरित करता हो।’’

मोदी ने कहा कि पूरे विश्व को पता होना चाहिए कि गुलामी के कालखंड में भी ऐसे लोग पैदा होते थे जो इस तरह के गीत रचते थे। उन्होंने कहा, ‘‘हम गर्व से कहेंगे तो दुनिया भी मानना शुरू कर देगी।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका से प्रकाशित साप्ताहिक ‘इंडियन ओपिनियन’ में दो दिसंबर 1905 को लिखा था, ‘‘गीत वंदे मातरम, जिसे बंकिम चंद्र ने रचा है, पूरे बंगाल में अत्यंत लोकप्रिय हो गया है। स्वदेशी आंदेलन के दौरान बंगाल में विशाल सभाएं हुईं, लाखों लोग एकत्रित हुए और सबने बंकिम का यह गीत गाया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वंदे मातरम इतना महान था तो पिछली सदी में इसके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों हुआ ? वंदे मातरम के साथ विश्वासघात क्यों हुआ ? कौन सी ताकत थी जिसकी भावना बापू की भावना पर भारी पड़ गई, जिसने वंदे मातरम जैसी पवित्र भावना को भी विवादों में घसीट दिया। अन्याय क्यों किया गया ?’’

भाषा वैभव मनीषा

मनीषा