नयी दिल्ली, आठ अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को 2017 में सात साल की बच्ची के यौन उत्पीड़न और हत्या के मामले में मौत की सजा पाए एक व्यक्ति को बरी कर दिया और कहा कि मामले में “एकतरफा तरीके” से मुकदमा चलाया गया और उसे पुलिस द्वारा “बलि का बकरा” बनाया गया था।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एक आरोपी को स्वयं को बचाने का संवैधानिक अधिकार काल्पनिक या आभासी नहीं है और यह न्यायालय तथा राज्य का दायित्व है कि आरोपी को किसी मामले में जहां उसे मृत्युदंड दिया जा सकता है, उचित मौका देकर उसकी रक्षा सुनिश्चित की जाए, ताकि वह अन्याय या नुकसान न झेले।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने आरोपी दशवंत की अपील पर यह फैसला सुनाया। दशवंत ने मद्रास उच्च न्यायालय के जुलाई 2018 के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें निचली अदालत द्वारा उसे दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा गया था।
पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष महत्वपूर्ण परिस्थितियों को साबित करने में बुरी तरह विफल रहा, जिसमें अंतिम बार एक साथ देखे जाने का सिद्धांत और डीएनए प्रोफाइलिंग तुलना स्थापित करने वाली एफएसएल रिपोर्ट शामिल हैं, जिन पर उसकी सजा आधारित थी।
उसने कहा कि अपीलकर्ता का प्रतिनिधित्व किसी बचाव पक्ष के वकील द्वारा नहीं किया गया था और आरोप तय होने के बाद 13 दिसंबर, 2017 को उसे मुफ्त कानूनी सहायता के तहत वकील की सेवाएं प्रदान की गईं।
पीठ ने 71 पन्नों के अपने फैसले में कहा, “उपरोक्त घटनाक्रम और कार्यवाही के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि आरोप तय करने के चरण से ही मुकदमा एकतरफा ढंग से चलाया गया और निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों का उचित सम्मान नहीं किया गया।”
न्यायालय ने कहा कि सीसीटीवी कैमरे के डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर से डेटा एकत्र करने में विफलता ने जांच एजेंसी की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह पैदा किया है। कथित तौर पर घटना वाले दिन अपीलकर्ता की संदिग्ध गतिविधियां सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गयी थीं।
अपील स्वीकार करते हुए पीठ ने उच्च न्यायालय के साथ-साथ निचली अदालत द्वारा दिए गए निर्णयों को भी रद्द कर दिया।
इसने अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया और उसे आरोपों से बरी कर दिया।
पीठ ने निर्देश दिया कि यदि अपीलकर्ता किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है, तो उसे तुरंत हिरासत से रिहा कर दिया जाए।
अधीनस्थ अदालत ने उस व्यक्ति को हत्या और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, नाबालिग पीड़िता लापता हो गई थी और अपीलकर्ता द्वारा किये गये खुलासे के आधार पर आठ फरवरी, 2017 को उसका जला हुआ शव बरामद किया गया था।
उसे आठ फरवरी, 2017 को गिरफ्तार किया गया था।
मुकदमे के दौरान, उसने आरोपों का खंडन किया था और कहा था कि उसे झूठा फंसाया गया है।
भाषा प्रशांत सुरेश
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