नयी दिल्ली, 31 दिसंबर (भाषा)उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड के हल्द्वानी निवासी एक व्यवसायी की उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा कथित तौर पर की गई अवैध गिरफ्तारी के खिलाफ दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करने से बुधवार को इनकार कर दिया। हालांकि, शीर्ष अदालत ने मामले में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की अनुमति प्रदान कर दी।
न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की अवकाशकालीन पीठ ने याचिकाकर्ता उमंग रस्तोगी की ओर से पेश हुए अधिवक्ताओं आनंद कुमार और आदित्य गिरि को राहत के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख करने को कहा। पीठ ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि याचिकर्ता के पिता की गिरफ्तारी के संबंध में इसी तरह की एक याचिका दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है।
शीर्ष न्यायालय ने टिप्पणी की, ‘‘ आप पहले ही उच्च न्यायालय से संपर्क कर चुके हैं (उस दूसरे मामले में जिससे यह मामला उत्पन्न हुआ है)। आदर्श रूप से, उच्च न्यायालय को इस मामले पर भी विचार करना चाहिए… यह आपके लिए उपयुक्त होगा।’’
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकीलों ने दलील दी कि उत्तर प्रदेश पुलिस के बिसरख पुलिस थाने के अधिकारियों ने हल्द्वानी से प्रतिशोध की भावना से रस्तोगी को उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हुए और लिखित में कारण बताए बिना अवैध रूप से गिरफ्तार किया है।
गिरि ने अदालत को बताया कि रस्तोगी और उनका परिवार उत्तराखंड और दिल्ली में रह रहा है और उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा उन्हें लगातार निशाना बनाया जा रहा है।
उन्होंने दावा किया कि रस्तोगी के पिता को 28 नवंबर को दिल्ली से अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया था और उन्हें किसी भी मजिस्ट्रेट के सामने पेश किए बिना पांच दिनों तक ग्रेटर नोएडा के बिसरख पुलिस थाने में हिरासत में रखा गया था।
अधिवक्ता ने पीठ को सूचित किया कि उनके मुवक्किल के पिता की अवैध गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है जिस पर आठ जनवरी को सुनवाई होनी है।
उच्चतम न्यायालय ने रस्तोगी को उचित अदालत से राहत पाने की स्वतंत्रता देते हुए मामले का निस्तारण कर दिया।
भाषा धीरज नरेश
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