अदालतें राज्यों को विशेष योजनाएं लागू करने का निर्देश नहीं दे सकतीं : न्यायालय

अदालतें राज्यों को विशेष योजनाएं लागू करने का निर्देश नहीं दे सकतीं : न्यायालय

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  • Publish Date - February 23, 2024 / 01:04 PM IST,
    Updated On - February 23, 2024 / 01:04 PM IST

नयी दिल्ली, 23 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सरकार के नीतिगत मामलों की जांच में न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित है और अदालतें राज्यों को इस आधार पर किसी विशेष नीति या योजना को लागू करने का निर्देश नहीं दे सकती हैं कि “बेहतर, निष्पक्ष या समझदार” विकल्प उपलब्ध है।

भूख और कुपोषण से निपटने के लिए सामुदायिक रसोई स्थापित करने की योजना बनाने की अपील करने वाली एक जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए न्यायालय ने यह टिप्पणी की।

शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए मामले में कोई भी निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) और अन्य कल्याणकारी योजनाएं केंद्र और राज्यों द्वारा लागू की जा रही हैं।

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि नीति की विवेकशीलता या सुदृढ़ता के बजाय नीति की वैधता न्यायिक समीक्षा का विषय होगी।

पीठ ने कहा, “यह सर्वविदित है कि नीतिगत मामलों की जांच में न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित है। अदालतें किसी नीति की शुद्धता, उपयुक्तता या औचित्य की जांच नहीं करती हैं और न ही कर सकती हैं, न ही अदालतें उन नीतिगत मामलों में कार्यपालिका की सलाहकार हैं जिन्हें बनाने का कार्यपालिका को अधिकार है। अदालतें राज्यों को किसी विशेष नीति या योजना को इस आधार पर लागू करने का निर्देश नहीं दे सकतीं कि एक बेहतर, पारदर्शी या तार्किक विकल्प उपलब्ध है।”

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर है कि वह वैकल्पिक कल्याण योजनाओं के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करें।

पीठ ने कहा, “जब खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रदान करने के लिए ‘अधिकार आधारित दृष्टिकोण’ के साथ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) लागू है और जब लोगों को गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए किफायती मूल्य पर पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तापूर्ण भोजन की पहुंच सुनिश्चित करने के वास्ते उक्त अधिनियम के तहत अन्य कल्याणकारी योजनाएं भी भारत संघ और राज्यों द्वारा बनाई और कार्यान्वित की गई हैं, तो हम उस संबंध में कोई और दिशा देने का प्रस्ताव नहीं करते ।”

न्यायालय ने कहा, “हमने इस बात की जांच नहीं की है कि एनएफएसए के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सामुदायिक रसोई की अवधारणा राज्यों के लिए एक बेहतर या समझदारी भरा विकल्प है या नहीं, बल्कि हम ऐसी वैकल्पिक कल्याणकारी योजनाओं का पता लगाना राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों पर छोड़ना पसंद करेंगे जो एनएफएसए के तहत अनुमत हो सकती हैं।”

शीर्ष अदालत का फैसला सामाजिक कार्यकर्ता अनुन धवन, इशान सिंह और कुंजन सिंह द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर आया। याचिका में भूख और कुपोषण से निपटने के वास्ते सामुदायिक रसोई के लिए एक योजना तैयार करने के उद्देश्य से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश देने की अपील की गई थी।

भाषा प्रशांत नरेश

नरेश