नयी दिल्ली, 25 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि संविधान का अनुच्छेद 32 न्यायालय को प्रक्रियागत सुरक्षा उपायों के उल्लंघन के आधार पर मृत्युदंड के मामलों में सजा पर फिर से विचार करने का अधिकार देता है। न्यायालय ने मृत्युदंड की सजा पाए एक दोषी की याचिका पर फिर से सुनवाई करने पर सहमति जताते हुए यह टिप्पणी की।
नागपुर निवासी वसंत संपत दुपारे को अप्रैल 2008 में चार साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या का दोषी ठहराया गया था। उसने बच्ची को चॉकलेट का लालच दिया था और शव की पहचान से बचने के लिए बच्ची के सिर को पत्थरों से कुचल दिया था।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने अनुच्छेद 32 के तहत दोषी की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि प्रक्रियागत सुरक्षा उपायों का उल्लंघन हुआ है।
इसमें 2022 के मनोज बनाम मध्य प्रदेश के फैसले का भी हवाला दिया गया जिसमें शीर्ष अदालत ने कई दिशानिर्देश जारी किए और अधीनस्थ अदालत को मौत की सजा देने से पहले अभियुक्त की मनोरोग और मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन रिपोर्ट एकत्र करने का आदेश दिया।
पीठ ने कहा, “हम मानते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत यह न्यायालय उन मामलों में, जहां किसी आरोपी को मृत्युदंड दिया गया है, दंड निर्धारण की प्रक्रिया पर फिर से विचार करने का अधिकार रखता है, यदि यह सुनिश्चित नहीं किया गया हो कि ‘मनोज बनाम मध्य प्रदेश’ मामले में निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन किया गया है।”
न्यायालय ने कहा, “इस सुधारात्मक शक्ति का प्रयोग विशेष रूप से इस उद्देश्य से किया जाता है कि ‘मनोज’ निर्णय में निर्धारित सुरक्षा उपायों का कठोरता से पालन सुनिश्चित किया जा सके, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मृत्युदंड पाए व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत प्राप्त समानता, व्यक्तिगत दंड निर्धारण और निष्पक्ष प्रक्रिया जैसे मौलिक अधिकारों से वंचित न किया जाए।”
सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 32 का असाधारण अधिकार किसी मामले को पुनः खोलने का नियमित माध्यम नहीं बन सकता।
पीठ ने कहा, “पुनः सुनवाई केवल उन मामलों के लिए आरक्षित होगी जहां नए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का स्पष्ट, विशिष्ट उल्लंघन है, क्योंकि ये उल्लंघन इतने गंभीर हैं कि अगर इन्हें ठीक नहीं किया गया, तो वे आरोपी व्यक्ति के मूल अधिकारों जैसे गरिमा और निष्पक्ष प्रक्रिया को कमजोर कर देंगे।”
न्यायालय ने दोषसिद्धि को बरकरार रखा, लेकिन वर्तमान में सजा पर लिए गए 2017 के दृष्टिकोण को दरकिनार कर दिया और मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए उचित सूचीबद्धता के वास्ते भारत के प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई के समक्ष रखा ।
उच्चतम न्यायालय ने 2014 में दुपारे की सजा की पुष्टि की थी। 26 नवंबर, 2014 के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका को शीर्ष अदालत ने तीन मई, 2017 को खारिज कर दिया था। इसके बाद उसने महाराष्ट्र के राज्यपाल और राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की, जिन्हें क्रमशः 2022 और 2023 में खारिज कर दिया गया।
भाषा प्रशांत अविनाश
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