दिल्ली दंगे: अदालत ने कहा, विरोध करने का अधिकार मौलिक; पांच आरोपियों को दी जमानत |

दिल्ली दंगे: अदालत ने कहा, विरोध करने का अधिकार मौलिक; पांच आरोपियों को दी जमानत

दिल्ली दंगे: अदालत ने कहा, विरोध करने का अधिकार मौलिक; पांच आरोपियों को दी जमानत

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:55 PM IST, Published Date : September 3, 2021/6:53 pm IST

नयी दिल्ली, तीन सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों से जुड़े एक मामले में महिला सहित पांच आरोपियों को जमानत देते हुए शुक्रवार को कहा कि लोकतांत्रिक राजनीति में विरोध और असहमति जताने का अधिकार मौलिक है। अदालत ने कहा कि इस विरोध करने अधिकार का इस्तेमाल करने वालों को कैद करने के लिए इस कृत्य का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने कहा कि यह सुनिश्चित करना अदालत का संवैधानिक कर्तव्य है कि राज्य की अतिरिक्त शक्ति की स्थिति में लोगों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से मनमाने ढंग से वंचित नहीं किया जाए।

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने पांच अलग-अलग फैसलों में आरोपियों- मोहम्मद आरिफ, शादाब अहमद, फुरकान, सुवलीन और तबस्सुम को जमानत दे दी। आरोपी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या के लिए अभियोजन का सामना कर रहे हैं।

अदालत ने कहा, ‘यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि विरोध करने और असहमति जताने का अधिकार एक ऐसा अधिकार है जो लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में मौलिक दर्जा रखता है, और इसलिए, विरोध करने के एकमात्र कार्य को उन लोगों की कैद को सही ठहराने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए जिन्होंने इस अधिकार का प्रयोग किया है।’’

अदालत ने कहा कि हालांकि सार्वजनिक गवाहों और पुलिस अधिकारियों के बयानों की निश्चितता और सत्यता को इस चरण में नहीं देखा जाना चाहिए और यह सुनवाई का मामला है। लेकिन इस अदालत की राय है कि यह याचिकाकर्ताओं के लगातार कारावास को सही ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है।

अदालत ने कहा कि विचारणीय मुद्दा यह है कि क्या जब किसी गैरकानूनी भीड़ द्वारा हत्या का अपराध किया गया तो इस भीड़ में शामिल प्रत्येक व्यक्ति को जमानत से वंचित किया जाना चाहिए।

अदालत ने कहा कि जमानत नियम और जेल अपवाद है तथा उच्चतम न्यायालय ने कई बार यह कहा है कि अदालतों को ‘स्पेक्ट्रम’ के दोनों छोरों तक जागरूक रहने की जरूरत है, यानी यह सुनिश्चित करना अदालतों का कर्तव्य है कि आपराधिक कानून को उचित तरीके से लागू किया जाए तथा कानून लक्षित उत्पीड़न का कोई औजार नहीं बने।

पुलिस ने फुरकान, आरिफ, अहमद, सुवलीन और तबस्सुम को पिछले साल क्रमश: एक अप्रैल, 11 मार्च, छह अप्रैल, 17 मई और तीन अक्टूबर को गिरफ्तार किया था।

भाषा अविनाश अनूप

अनूप

 

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