स्थानीय निकाय चुनावों में 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को पार न करें: न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से कहा

स्थानीय निकाय चुनावों में 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को पार न करें: न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से कहा

स्थानीय निकाय चुनावों में 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को पार न करें: न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से कहा
Modified Date: November 17, 2025 / 05:24 pm IST
Published Date: November 17, 2025 5:24 pm IST

नयी दिल्ली, 17 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार से कहा कि अगले महीने होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक न हो तथा चेतावनी दी कि यदि आरक्षण की सीमा का उल्लंघन हुआ, तो चुनाव पर रोक लगा दी जाएगी।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव 2022 की जे के बांठिया आयोग की रिपोर्ट से पहले की स्थिति के अनुसार ही कराए जा सकते हैं, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणियों में 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई थी।

महाराष्ट्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अनुरोध पर पीठ ने मामले की सुनवाई 19 नवंबर के लिए तय की, लेकिन राज्य सरकार से कहा कि वह 50 प्रतिशत की सीमा से आगे न बढ़े।

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शीर्ष अदालत ने कहा, “अगर दलील यह है कि नामांकन शुरू हो गया है और अदालत को अपना काम रोक देना चाहिए, तो हम चुनाव पर रोक लगा देंगे। इस अदालत की शक्तियों का इम्तिहान न लें।”

पीठ ने कहा, “हमारा संविधान पीठ द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को पार करने का कभी इरादा नहीं था। हम दो न्यायाधीशों वाली पीठ में बैठकर ऐसा नहीं कर सकते। बांठिया आयोग की रिपोर्ट अब भी न्यायालय में विचाराधीन है, हमने पहले की स्थिति के अनुसार चुनाव कराने की अनुमति दी थी।”

शीर्ष अदालत ने उन याचिकाओं पर भी नोटिस जारी किया, जिनमें आरोप लगाया गया है कि कुछ मामलों में राज्य के स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण 70 प्रतिशत तक पहुंच गया है।

मेहता ने कहा कि नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि सोमवार है और उन्होंने शीर्ष अदालत के छह मई के आदेश का हवाला दिया, जिसने चुनाव कराने का मार्ग प्रशस्त किया था।

न्यायमूर्ति बागची ने कहा,“हम स्थिति से पूरी तरह अवगत थे। हमने संकेत दिया था कि बांठिया से पहले वाली स्थिति बनी रह सकती है। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि सभी के लिए 27 प्रतिशत की छूट होगी? अगर ऐसा है, तो हमारा निर्देश इस अदालत के पिछले आदेश के विपरीत है। इसका मतलब यह होगा कि यह आदेश दूसरे आदेश के विपरीत होगा।”

भाषा प्रशांत दिलीप

दिलीप


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