देहरादून, 16 सितंबर (भाषा) श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति ने शुक्रवार को कहा कि केदारनाथ मंदिर में गर्भगृह की दीवारों पर अब चांदी की जगह सोने की परतें चढ़ाई जाएंगी।
समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने कहा कि उत्तराखंड सरकार से इसकी अनुमति मिलने के बाद गर्भगृह में चारों दीवारों पर लगी चांदी की परतों को उतार दिया गया है।
उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र के एक शिवभक्त के प्रस्ताव पर समिति ने प्रदेश सरकार से केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में सोने की परतें लगाने की अनुमति मांगी थी।
अजेंद्र ने कहा कि गर्भगृह का आवश्यक माप इत्यादि लेकर उसके अनुरूप सोने की परतें तैयार कर लगाई जाएंगी। हालांकि, उन्होंने कहा कि चूंकि गर्भगृह में पूर्व में चांदी की परतें लगी थीं, लिहाजा सोने की परतें लगाने के लिए गर्भगृह में नाममात्र के लिए ही अतिरिक्त कार्य की आवश्यकता होगी।
समिति के अध्यक्ष ने स्पष्ट किया कि सोने की परतें चढ़ाते समय किसी प्रकार की परंपरा या धार्मिक मान्यताओं से छेड़छाड़ नहीं की जा रही है।
इस मामले में कुछ लोगों द्वारा किए जा रहे विरोध को ‘औचित्यहीन’ बताते हुए अजेंद्र ने कहा कि गर्भगृह में सोने की परतें चढ़ाने के मामले में धार्मिक मान्यताओं, परम्पराओं और पुरातत्व विशेषज्ञों की सलाह का पूरा पालन किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि इतिहास साक्षी है कि प्राचीन काल से ही हिंदू मंदिर वैभवता के प्रतीक रहे हैं और स्वर्ण व रत्नजड़ित आभूषणों से देवी-देवताओं का श्रृंगार किया जाता था।
उन्होंने कहा, ‘‘मंदिरों के गर्भगृह व स्तंभ मूल्यवान धातुओं और रत्नों से सजाए जाते थे। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर में हमलावरों द्वारा कई बार लूटपाट किये जाने का वर्णन इतिहास में मिलता है।’’
अजेंद्र ने कहा कि वर्तमान में भी सोमनाथ व काशी विश्वनाथ समेत अनेक बड़े शिवालयों के गर्भगृह से लेकर बाहरी आवरण तक को सोने की परतों से सजाया गया है।
इस संबंध में उन्होंने कहा कि जो लोग केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में सोने की परत चढ़ाए जाने का विरोध कर रहे हैं, वे सोशल मीडिया पर शास्त्रों का हवाला देकर कई भ्रामक तथ्य फैला रहे हैं।
समय के साथ धार्मिक स्थलों में परिवर्तन को आवश्यक बताते हुए अजेंद्र ने कहा, ‘‘दशकों पहले श्री केदारनाथ मंदिर की छत घास-फूस (स्थानीय भाषा में खाड़ू ) से बनायी जाती थी जिसके लिए खाड़ू घास उगाने के लिए कुछ खेत नियत थे। लेकिन समय बदला तो घास के स्थान पर पत्थर की पठाल लगायी गयी। इसके बाद टिन की छत तथा वर्तमान में तांबे के पतरों (शीट) की छत है।’’
भाषा दीप्ति दीप्ति संतोष
संतोष