नयी दिल्ली, पांच फरवरी (भाषा) तमिलनाडु सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि राज्यपाल आर एन रवि का विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को दूसरी बार भी मंजूरी नहीं देना देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था की विफलता होगी।
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के मुद्दे पर राज्यपाल के साथ चल रहे टकराव को लेकर दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। ये याचिकाएं तमिलनाडु सरकार ने दायर की हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि पक्षों के बीच विवाद के कारण जनता और राज्य को नुकसान हो रहा है।
राज्य सरकार की ओर से चार फरवरी को पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि कानून के तहत, अगर राज्य विधानमंडल विधेयक पारित करता है, तो राज्यपाल पुनर्विचार के लिए कह सकते हैं।
रोहतगी ने दलील दी, ‘‘हालांकि, अगर उसी विधेयक को फिर से पारित किया जाता है और राज्यपाल के समक्ष दूसरी बार पेश किया जाता है, तो राज्यपाल के पास स्वीकृति देने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। यह हमारे संवैधानिक ढांचे में निर्धारित प्रक्रिया है। अगर राज्यपाल फिर भी अपनी स्वीकृति नहीं देते हैं या अपनी स्वीकृति देने में विफल रहते हैं, तो यह हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली की विफलता है।’’
तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजने का विकल्प पहली बार में ही तय किया जाना चाहिए था और इसे बाद में नहीं किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि विधेयक के दोबारा पारित होने और राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किए जाने के बाद, उनके पास मंजूरी देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था और दूसरी बार में वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए नहीं रख सकते थे।
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई छह फरवरी के लिए स्थगित कर दी और कहा कि वह पहले तमिलनाडु सरकार के वकील और फिर राज्यपाल का प्रतिनिधित्व करने वाले अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि की दलीलें सुनेगी।
राज्य सरकार ने 2023 में शीर्ष अदालत का रुख किया और रवि पर विधेयकों को मंजूरी देने में देरी का आरोप लगाया है।
भाषा शफीक रंजन
रंजन
Follow us on your favorite platform:
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)