सरकार ने महात्मा गांधी के रामराज्य से जुड़े विचारों को नष्ट किया: महुआ मोइत्रा

सरकार ने महात्मा गांधी के रामराज्य से जुड़े विचारों को नष्ट किया: महुआ मोइत्रा

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  • Publish Date - December 17, 2025 / 06:52 PM IST,
    Updated On - December 17, 2025 / 06:52 PM IST

नयी दिल्ली, 17 दिसंबर (भाषा) तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने बुधवार को लोकसभा में आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के स्थान पर दूसरा विधेयक लाकर और इससे राष्ट्रपिता का नाम हटाकर उनके रामराज्य से जुड़े विचारों का नष्ट किया है।

उन्होंने ‘विकसित भारत-जी राम जी विधेयक, 2025’ पर चर्चा में भाग लेते हुए यह भी दावा किया कि महात्मा गांधी का नाम हटाना न सिर्फ उनका, बल्कि रवींद्रनाथ टैगोर का भी अपमान है, जिन्होंने सबसे पहले उन्हें (गांधी को) ‘महात्मा’ कहा था।

महुआ ने दावा किया कि बिना किसी से विचार-विमर्श किए मनरेगा को निरस्त करने के लिए यह विधेयक लाया गया।

उन्होंने कहा, ‘‘रवींद्रनाथ टैगोर ने मोहन दास करमचंद गांधी को सबसे पहले महात्मा कहा था… इसलिए नाम बदला जाना सिर्फ महात्मा गांधी का ही नहीं, बल्कि गुरुदेव (टैगोर) का भी अपमान है।’’

तृणमूल सांसद ने रामराज्य पर महात्मा गांधी के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि विधेयक का नाम बदलकर गांधीजी के रामराज्य के विचार को नष्ट कर दिया है।

महुआ ने दावा किया कि विधेयक में 92 बार गारंटी शब्द का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन विधेयक कोई गारंटी प्रदान नहीं करता।

उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिम बंगाल को मनरेगा के बकाये की राशि नहीं दी गई, जबकि तृणमूल के सांसदों ने हर स्तर पर यह मांग उठाई।

तृणमूल सांसद ने कहा कि बकाये की राशि जल्द जारी की जानी चाहिए।

समाजवादी पार्टी के सांसद नरेश उत्तम पटेल ने चर्चा में भाग लेते हुए दावा किया कि इस योजना के तहत राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डाला गया है।

उन्होंने महात्मा गांधी का नाम हटाए जाने का उल्लेख करते हुए कहा कि भाजपा को बताना चाहिए कि (उसे) महात्मा गांधी से नफरत क्यों है।

पटेल ने कटाक्ष करते हुए कहा, ‘‘आप राम का नाम ले सकते हैं, लेकिन सावरकर का नाम नहीं ले सकते।’’

उनका कहना था, ‘‘ग्रामीण भारत को नारे नहीं, काम चाहिए।’’

द्रमुक सांसद कनिमोझि करुणानिधि ने विधेयक का हिंदी में नाम होने पर आपत्ति जताई।

उन्होंने कहा, ‘‘हर विधेयक के जरिये संस्कृत और हिंदी थोपने की कोशिश की गई है। आपने कोई भी विधेयक किसी दक्षिण भारतीय भाषा में पेश क्यों नहीं किया?’’

कनिमोझि ने कहा कि यह सरकार कोई एक विधेयक तो तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, मराठी में पेश कर सकती थी।

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